प्रेम और विश्वास कभी भी,
संबन्ध नहीं पैसों से बनते, नहीं धोखे से लूटे जाते।
प्रेम और विश्वास कभी भी, कानूनों में नहीं बंध पाते।।
प्रेम बिना संबन्ध न होता।
जबरन तो बस बंधन होता।
धन की खातिर संबन्ध बनाए,
पवित्र नहीं, गठबंधन होता।
जहाँ होता है, प्रेम समर्पण, संबन्ध स्वयं ही खिलते जाते।
प्रेम और विश्वास कभी भी, कानूनों में नहीं बंध पाते।।
झूठ बोलकर जिसने फँसाया।
उसने है विश्वास गँवाया।
शान्ति कभी ना उसको मिलती,
कितना भी हो स्वर्ण कमाया।
छल, कपट और षड्यन्त्रों से तो, मित्र भी शत्रु बन जाते।
प्रेम और विश्वास कभी भी, कानूनों में नहीं बंध पाते।।
धोखे से जिसने जो पाया।
कभी नहीं है, सुक्ख उठाया।
धन लूटे, भले प्राण भी लूटे,
झूठो को हमने ठुकराया।
जहाँ प्रेम विश्वास समर्पण, विकसित होते रिश्ते-नाते।
प्रेम और विश्वास कभी भी, कानूनों में नहीं बंध पाते।।