गीतिका/ग़ज़ल

मुकर गया वो

कहकर भी यारों मुकर गया वो।
वादा खिलाफी मुझसे कर गया वो।।
ताउम्र जलती रही शम्मा मगर।
जमाने के डर से घर गया वो।।
आस थी कि आयेगा लौटकर।
चाँद पर लेकिन मचल गया वो।।
जिद न हुई पूरी उसकी मगर।
मुहब्बत भी बदनाम कर गया वो।।
तमन्ना है कि मिले किसी मोड़ पर।
दाग देकर अपने नगर गया वो।।
कैसे सजा दूं मै उसके गुनाहों की।
खताओं को भी माफ कर गया वो।।
मुकद्दर मे लिखा था जो शलभ।
हाथ लकीरों में ठहर गया वो।।
— प्रीती श्रीवास्तव

प्रीती श्रीवास्तव

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