गीत
क्षितिज तीर पीड़ा के गहरे से चित्र हुए ,
ज्यों ज्यों गहराने लगी, जाड़ों की रात है।
अल्पायु दिन बीता ,लंबी सी रात हुई ।
ठिठुर गयें पेड़ों से,शीत की बरसात हुई।
घाम और कुहरा जब आपस में मित्र हुए,
सूरज बिन गायब अब सर से जलजात है।
क्षितिज तीर …………………….
कुत्तों की कुकुराहट ,हूँकते सियारों से।
निष्ठुर सी रात हुई , हिम भरी बयारों से।
भटकी सी लोमड़ी के हाल भी विचित्र हुए,
कौं-कौं कर ढूँढ रही बिल नही सुझात है ।
क्षितिज तीर…………………….
बलवती बयार हुई, कथरी कमजोर लगे ।
हर तरफ से सेंध करे ,जाड़ा एक चोर लगे।
अतिथि कलाकार सरिस धूप के चरित्र हुए,
पता नही कब आये,कब ये चली जात है।
क्षितिज तीर………………………..
© डॉ दिवाकर दत्त त्रिपाठी
गोरखपुर