क्या घटा री ?
ओ शांत री
क्या घटा री ?
क्यों आगत री ?
नहीं कोई बहरी
ये तो मोहपाश
कटिबद्धता लिए
महीपाश है
जन्म-जन्मांतर के प्रसंगश:
अभिशप्त के विरुद्धश:
अखंड जाप के वचनबद्धश:
कई-कई युगों की भीत पर
अखंडता की रीत पर
आदत रीति-रिवाज के प्रीतिकर
कर दे कल्याण
अभियान के अभिनयकर
एक आत्मा ही है,
जो प्रात के प्रीतम बिन
युगादि के सीत पर
उस रुक-रुक के
चरणस्पर्श वह !
क्या दिन, क्या रात है ?
हाँ, यह जज्बात है !
और भी प्रसंग
धराशायी हुए
भीत नवगीत हुए !