गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

जिंदगी  लाजवाब  है  न  सवालों  में  उलझ
चलती फिरती किताब है न सवालों में उलझ
देखने  दे  हसीं  दिलकश  ये  नजारे अब तो
पूरा करले जो ख़्वाब है न सवालों में उलझ
कभी घटता है बढ़ता है कभी आता न नज़र
फिर भी वो माहताब  है न सवालों में उलझ
खोल  दे  दिल  के झरोखों  को हवा आने दे
उडने दे  ये  हिजाब  है  न  सवालों में उलझ
अब तो  छूने  दे ख्वाहिशों के आसमानों को
खिलने को आफ़ताब है न सवालों में उलझ
— पुष्पा अवस्थी “स्वाती” 

*पुष्पा अवस्थी "स्वाती"

एम,ए ,( हिंदी) साहित्य रत्न मो० नं० 83560 72460 [email protected] प्रकाशित पुस्तकें - भूली बिसरी यादें ( गजल गीत कविता संग्रह) तपती दोपहर के साए (गज़ल संग्रह) काव्य क्षेत्र में आपको वर्तमान अंकुर अखबार की, वर्तमान काव्य अंकुर ग्रुप द्वारा, केन्द्रीय संस्कृति मंत्री श्री के कर कमलों से काव्य रश्मि सम्मान से दिल्ली में नवाजा जा चुका है