लघुकथा

अमीरों के महंगे मजाक

जश्न के नशे में तो कोई जाम के नशे में झूमते नाचते ,हवा में नोटों की गड्डियां उडाते बाराती । इधर नोटों को बहुत ही उत्साह से कभी हवा में लपकते कभी जमीन से समेटते … इस बीच कई बार पैरों के बीच हाथ भी कुचला जाता लेकिन खुश थे कि बेन्ड बाजे बाले कि आज न्योछावर अच्छी मिली है दो पैसै ज्यादा आ जायेगें ।

रात का झूठी खुशी का नशा था  जो सुबह उतर गया । कभी वह लोग अपने जख्मी हाथों को देखते तो कभी लूटे हुए नकली नोटों को… एक टीस निकली दिल से ..
“तुम अमीरो के असली उत्सव पर यह नकली मजाक हमें जख्म असली दे गया है ”

@रजनी चतुर्वेदी

रजनी बिलगैयाँ

शिक्षा : पोस्ट ग्रेजुएट कामर्स, गृहणी पति व्यवसायी है, तीन बेटियां एक बेटा, निवास : बीना, जिला सागर