प्रेम का फरवरी-फरवरी
प्रेम का फरवरी माह यानी भगवान बना जा सकता है, परंतु इंसानी प्रेम पाना है मुश्किल ! कोई व्यक्ति त्याग करता है और अच्छे मार्ग की तरफ चलने की कोशिश करता है, तो उसे व्यंग्य रूप में मत देखिये, न ही उसे यह मत कहिये कि वह ‘भगवान’ बन रहा है ।
अरे यार ! भगवान बनना आसान है, किन्तु इंसान बनना मुश्किल ही नहीं, दुरूहतम है । क्रिकेट के भगवान पहले डोनाल्ड ब्रेडमेन थे, अब सचिन तेंदुलकर है, कालांतर में विराट कोहली हो सकते हैं ।
हरफनमौला नाम से कपिल देव पहचाने जाते हैं, तो स्पिन के भगवान अनिल कुंबले हैं। भगवान का मतलब श्रद्धा, आस्था सहित अहर्निश सेवा और एवेरेस्टीय कीर्तिमान से भी है।
श्रीराम, श्रीकृष्ण, आदिदेव इत्यादि की पहचान उनके उपासक द्वारा उनकी उपासना के प्रसंगश: होती है । छत्रपति शिवाजी, गाँधीजी, सावित्रीबाई फुले, डॉ. अम्बेडकर भी अपने -अपने विचारों के साथ विस्तारता लिए भगवान है।
‘आर्थिक अस्पृश्यता’ जो राजनीतिकदारों की देन है– के कारण ही भ्रष्टाचार पनपती है, किन्तु ‘आर्थिक भ्रष्टाचार’ की मार से कोई भी उबर नहीं पाया है आजतक ! हमें ऐसे कुकृत्य का पर्दाफाश करना चाहिए ।
कोई संस्था एक परिवार की तरह होते हैं और जहाँ परिवार के हर सदस्य एक माँ -बाप के संतान होते हुए भी सबके कृत्य अलग होते हैं, उद्देश्य एक होने के बावजूद! संस्था का कार्य चरैवेतिरूपेण है।
इनमें से ही अलग और स्वच्छ छवि के व्यक्ति की एक अलग पहचान बन ही जाती है । महर्षि मेंहीं ने अच्छा कहा है– ‘जैसा खाये अन्न, वैसा होय मन ; जैसा पानी पिये, वैसा वाणी हिये ।’ इसलिए अकसर हम खुद खाये अन्न -जल से बने मांसल लोथड़े और बुद्धि -बर्बरता को पारिवारिक हिस्सा बनाने से परिवार के दूषितकरण होने से इतर नहीं सोचते !
आज लालूजी और उनके परिवार ‘आर्थिक भ्रष्टाचार’ के आबद्ध हो चुके हैं । मंत्री पद या कोई भी पद सेवापरायणता का होता है । हाँ, एक समाज में असमान स्थिति -परिस्थितियाँ हो या संस्था में समान कार्य का असमान वेतन कर्मियों को तिरोहित करता है, यह सच है सोलहों आने ! मैं इस असमानता के विरुद्ध हूँ ।
किसी विद्यालय में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सम्पूर्णता लिए ही संभव है । एक अकेले मुख्यमंत्री व प्रधानमंत्री से क्रमशः राज्य या देश चल नहीं सकता, इसके लिए मंत्रिमंडल होती है, वह भी सदन के कुल सदस्यों के 15 फीसदी।
क्या विद्यालय में छात्रों के अनुपात में शिक्षक हैं ? अगर कोई कायदे -कानून की बात करता है, तो नियुक्त विषय के शिक्षक इतर विषय कैसे और क्यों पढ़ाये ? नियुक्त कक्षा के शिक्षक इतर कक्षा में कैसे और क्यों पढ़ाये ?
क्या शिक्षक -नेता को इन सब चीजों को नहीं सोचने चाहिए ! खाने और खिलाने में जो व्यक्ति परिवार के लिए सक्षम नहीं हो, उसे न संभोग करने चाहिए, न ही बच्चे निकालने चाहिए!
इसबार 2018 का फरवरी माह दो तरह के प्रेम लिए है । एक तो 14 फरवरी भी (प्रेम -परवान दिवस) इसी माह में है, तो फाल्गुन माह भी । यह फाल्गुन माह मदनोत्सव व वसंतोत्सव व काम क्रीड़ा दिवस लिए प्रसिद्ध है । प्रेम सिर्फ पत्नी या प्रेमिका से ही नहीं होता !
प्रेम तो माँ से भी है, पिता से है, बहन से है, भाई से है, विचार मिले तो सबसे है और आपसे है तो है । माँ ने दूध पीने के लिए स्तन ही दे दी।
पहला रहस्यात्मक प्यार माँ से निश्चित ही है और आपसे गाहे -बगाहे कई यौनिक चीजें भी शेयर करता हूँ, तो आपसे भी निश्चितश: है । प्रेम लिए फरवरी माह की अद्भुत विशेषता है।
आज पहली फरवरी को प्रेम के अद्भुत प्रतीक मेरे गाँव के, मेरे समाज के, मेरे पड़ौसी ‘मुन्ना’ नहीं रहे । उम्र 40 के पार था और कुँवारे थे और मानसिक विक्षिप्त तो नहीं, किन्तु मानसिक कमजोर थे, उन्होंने किसी को आजतक क्षति नहीं पहुँचाया।