शाब्दिक व्यंग्य : जिनावर का जिन्न
जिनावर , यह शब्द मैंने लगभग बारह- तेरह वर्ष की आयु में सुना था और इसका अर्थ जानवर या पशु से लगाया था । ज्यों- ज्यों मेरी उम्र बढ़ी, त्यों- त्यों समझ आते-आते मुझे यह निश्चित हो गया कि ‘ जिनावर ‘ का अभिप्राय ‘ जानवर ‘ से नहीं है ; ना आदमी से ही ; ना यह शब्द जानवर या आदमी के बीच के किसी जन्तु का बोध कराता है । जब मैं स्नातक का विद्यार्थी था , तो कवि – सम्मेलनों में काव्य- पाठ के लिए भी जाने लगा था । एक कवि- सम्मेलन में उर्दू के एक शायर जाने किस बात पर एक हिन्दी- कवि पर चीखे -“जिनावर कहीं का !” बस उस घटना से मेरे हृदय में ‘ जिनावर ‘ के प्रति ‘शोध ‘ का बीज पड़ गया ।
शोधाध्ययन में उर्दू के सारे ‘लुग़त ‘ (शब्दकोश) छान मारे , किसी में ‘ जिनावर,’ यह शब्द ना मिला ; हाँ ‘ जानवर’ शब्द सभी में था, जिसके अर्थ उनमें यूँ मिले- प्राणी ; पशु ; जन्तु ; हैवान व पशुओं जैसा आचरण करने वाला ! इनमें शेष अर्थ तो सामान्य लगे , परन्तु ‘ हैवान’ पर मेरी दृष्टि टिक गयी ! क्या जानवर का अर्थ हैवान होना ठीक है !! अब शोध नियमों के अनुसार मुझे हैवान के अर्थ देखने पड़े , जो उसी शब्दकोश में यूँ मिले – प्राणी ; जीव ; पशु और मूर्ख व्यक्ति ! इसमें विशिष्ट अर्थ – ‘ मूर्ख व्यक्ति ‘ लगा , परन्तु साथ ही मस्तिष्क में यह भी कौंधा कि जानवर न तो हैवान ही है; न मूर्ख व्यक्ति ही , तो क्या इन गुणों से सम्पन्न व्यक्ति को जानवर कहना उचित है ! बात तो ‘जिनावर’ की थी ! अब हिन्दी -शब्दकोश खंगाले , तो वहाँ भी ‘जिनावर’ शब्द ढूंढे ना मिला ! सोचा ‘ हैवान’ के सहारे शायद कुछ हाथ लगे , तो हिन्दी- शब्दकोश ने निराश न किया , उसमें हैवान के कुछ ‘ लाक्षणिक’ अर्थ मिले- मूर्ख ; उजड्ड और जंगली ! बात बस इतनी साफ़ हुई कि इन लाक्षणिक अर्थों के अर्थ में कोई हैवान है , परन्तु मूलतः हैवान क्या है , यह यहाँ भी अनुत्तरित रहा और जिनावर तो गोल ही !
शोध – मीमांसा अब जानवर तथा हैवान से पूर्णतः हटकर विशुद्ध ‘ जिनावर ‘ पर टिक गयी। यह स्पष्ट हो चुका था कि जिनावर न तो जानवर ही है और न हैवान ही , इस बिंदू पर आकर बहुत माथापच्ची की , कुछ निष्कर्ष ना निकला, तो शोध वहीं छोड़ दिया। प्रोफ़ेसर बना, तो स्नातकोत्तर में भाषाविज्ञान पढ़ाते हुए स्वयं भी शब्द- निर्माण की प्रक्रिया को और गहनता से पढ़ने का सौभाग्य मिला। शब्द का अर्थ , विशुद्ध अर्थ नहीं होता , उसमें लाक्षणिकता भी एकांगी कहाँ होती है , यह भी बोध होने लगा । जिनावर को विवेचन की ‘ टैस्ट ट्यूब ‘ में डाला, तो जिनावर के तत्व यूँ टूटे – जिना ( जिन्न का स्वर ) ; जो लोग अरबी के ‘ ज़िनां ‘ से परिचित हों, वे वहाँ भी दृष्टि रखें , यहाँ लिखना शोभनीय नहीं ; जिनावर , जिस में ‘ जि’ के हृस्व स्वर के बाद ‘आ’ का दीर्घ उच्चारण आदमी का बोध कराता और ‘ जि ‘ का परित्याग कर यदि मिश्रित शब्द के रूप में विचारें तो ‘ नावर,’ अर्थात् जो चयन नहीं हो !
अब, बोध हुआ कि जिनावर किसी भी अर्थ में जानवर नहीं है और जानवर किसी भी अर्थ में जिनावर ! जिनावर जिन्न और आदमी के सम्मिश्रण से युक्त एक ऐसा पृथक् जीव है, जो किसी भी दृष्टि से चयन के योग्य नहीं है और न चाहते हुए भी यह लिखना पड़ रहा है कि उसमें ‘ ज़िनां ‘ की विशेषता तो अपरिहार्य रूप से है ही ! ध्यान देने की बात यह है कि ज़िनां भी न तो जिनावर ही है और न ही जिनावर भी पूरी तरह ज़िनां ही ! सो अब जब भी किसी को जिनावर कहने का मन हो तो तौल अवश्य लें ,कहीं यूँ ना हो कि जानवर और हैवान , बेचारे बेवजह बदनाम हों जाएं और ‘ जिनावर ‘ यह सोचकर इतराये कि लो ,मैं पकड़ा तो गया ही नहीं !!
— डॉ. सम्राट् सुधा
जिनावर का अर्थ ‘जानवर’ ही है। हमारे गाँव में यह शब्द बहुत प्रचलित है। वैसे आपके कवि मित्र ने इसका उच्चारण अलग अर्थ में किया था, जिसकी चर्चा आपने नहीं की है। इसका वह दूसरा अर्थ है ‘बलात्कारी’। अभिनेता राजकुमार इसी अर्थ में दूसरों को ‘जानी’ कहा करते थे। यह उर्दू के ‘जिना’ शब्द से बना है।