कहानी

कहानी – गंगाघाट की गोमती

मंगलू ने लकडियों का बडा सा भारा नीचे फेंका और फिर लकडियों के ढेर को ओर देखता रहा। उसने साफे को सिर से उतार कर अपना पसीना पोंछा और मन ही मन बुदबुदाने लगा,‘‘ दो – तीन लाशों को तो जला ही देगा यह ढेर, हे राम! जय गंगा मैया !’’
फिर गंगा की धारा की ओर चल दिया। उसने देखा कि दूर घाट पर कोई लडकी बैठी है और गंगा की धारा में डूबते सूरज की लालिमा को देख रही है।
मंगलू ने अपनी आँखों पर जोर डाला-‘‘अरे! यह तो गोमती है।’’
मंगलू उसकी ओर कुछ पल देखता रहा। उसका मन किया कि वह उसके पास जाकर उससे थोडा बात करे लेकिन फिर एक पल में ही उसके मन में ख्याल आया। ‘‘कहाँ वह खानदानी पुरोहितों की लडकी और कहाँ मैं निम्न जाति का और वह भी एक नौकर। लाशों को जलाने में मदद करने वाला, पर वह नौकर नहीं है, वह तो…..।’’
बस इसके आगे मंगलू का मन रुक गया। फिर भी वह घाट की ओर बढता गया। गंगा की लहरों को देखते-देखते उसने अपने मन से भी नजरें चुराकर गोमती के चेहरे की ओर देख ही लिया। गोमती की चुनरी का एक पल्लू गंगा में डूब रहा था और दूसरा पल्लू उसकी बाहों में फँसा था। मंगलू को वह गंगा मैया की तस्वीर सी लगी, वैसी ही गंगा मैया की तस्वीर जैसी उसने बडे पुरोहित के घर दीवार पर लगी देखी है। वह गंगा की लहरों के करीब पहुँचा। सूर्य अस्त होने ही वाला था। दूर एक नौका गंगा पार कर रही थी। उधर गोमती डूबते सूरज के पीछे छूट चुकी लालिमा को निहार रही थी जो पानी में घुल कर गंगा जल जैसी ही बनती जा रही थी। मंगलू के मन में गोमती का रूप हावी हो रहा था। उसका सफेद पहनावा मंगलू को कभी आनंदित, कभी निराश करने की कोशिश कर रहा था। इन्हीं ख्यालों के संग वह वापिस शमशान घाट की ओर धीरे – धीरे चल पडा।
वह मन ही मन सोचता भी रहा -‘‘बडे पुरोहित की बडी इज्जत है पूरे इलाके में, पर मंगलू को भी अब लोग जानने लग पडे है वह छोटी जाति का होते हुए भी इस घाट वाले शमशान का सारा कामकाज सँभालता है। हर कोई सबसे पहले उसी से शव को जलाने की इजाजत लेता है। बडे पुरोहित के चरण धो – धोकर पीने से भी उस पर चढा ऋण नहीं उतर सकता। गंगा घाट के किसी शमशान पर तो कोई निम्न जाति का फटक भी नहीं सकता जबकि वह तो बडी – बडी जाति वालों को भी आज तक स्वर्ग का रास्ता दिखाता आया है।’’
गोमती उसके पास से कब चुपके से गुजर गई, उसे पता भी नहीं चला। जब वह ख्यालों से जागा तो उन्हीं घाट की सीढियों की ओर ताकने लगा जहाँ गोमती बैठी थी। वहाँ गोमती अब नहीं थी। वह फिर तेज कदमों से उसी जगह पर पहुँच गया जहाँ गोमती बैठी थी। उसने देखा की वहाँ तो सिर्फ अब गोमती की चुनरी ही रह गई थी और चुनरी भी गंगा की लहरों में बहने ही वाली है। मंगलू एक दम झुका और उसने चुनरी को उठा लिया। चुनरी हाथ में आते ही उसके मन ने कहा -‘‘अरे ये क्या! गंगा मैया जैसी पवित्र पुरोहितों की बेटी गोमती की चुनरी से एक निम्न जाति के हाथ लग गए।’’
उसके मन में फिर विचार उठे-‘‘ अब कहाँ वह छोटी जाति का रहा है? उसकी जात तो उस दिन ही खत्म हो गई थी, जिस दिन बडे पुरोहित उसे अपने घाट पर ले आए थे। लोग कहते हैं कि उसके माँ -बाप गंगा में डूब गए थे और बडे पुरोहित को वह बहुत दूर गंगा के किनारे तब मिला था जब वह सुबह की सैर को निकले थे। पर फिर भी पूरे इलाके को यह पता चल गया था कि वह दूर गाँव में किसी छोटी – जाति वाले का बच्चा था। बडे दिन तक कोई उसे ढूँढने नहीं आया और आता भी कौन, उसका बाप भी इकलौता ही था अपने घर में उसके दादा – दादी भी न थे। बडे पंडित ने तब से सिर पर हाथ रखा जो अब तक उसका सहारा बनता आया है।’’
उसने चुनरी को अपने खीसे में डाल लिया पर उसके मन ने फिर बाधा डाली – ‘‘बडे पुरोहित के घर कैसे जाएगा? गोमती की चुनरी देने के लिए ! कहीं पंडताइन ने कुछ और ही सोच लिया …. हे गंगा मैया ! इतना घोर पाप !’’
उसने झट से गंगा की लहरों की ओर देखा और सफेद चुनरी को बीच लहरों में फेंक दिया। चुनरी हिचकोले खाती हुई दूर तक बह गई। मंगलू चुनरी को बडी देर तक देखता रहा। सूर्य की सारी सुनहरी किरणें अब तक गंगाजल में पूरी तरह घुल चुकी थीं और कुछ किरणें वापिस सूर्य के पास जा चुकी थी। मंगलू रोज उसे यूँ ही गंगा घाट पर आते देखता रहा है वर्षों से। वह बिना नागा आती है। मंगलू को कभी वह गंगा मैया की तरह लगती है तो कभी ऐसी गोमती जिसके भविष्य में कई उतार -चढाव आने वाले हैं। गोमती उसकी हमउम्र है दोनों साथ – साथ बडे हुए। उसे पंडित जी की हर बात याद है।
एक दिन जब बडे पंडित शाम की संध्या के उपंरात अभी उठे ही थे कि गौमती उदास सी घर में दाखिल हुई थी। ‘‘क्या बात है बेटी?’’ पंडित जी ने बेटी की उदासी को भाँपते ही सब कुछ जान लिया था।
‘‘बस बाबा जी, पता नहीं क्यों गंगा घाट पर जाते ही मेरा मन उदास सा हो जाता है।’’
शायद बडे पंडित ने गौमती के मन का वह शोर सुन लिया था जो गोमती की कुंडली में लिखा था। एक ऐसा शोर जो गोमती की कुंडली में न जाने कब से पंडित जी के कानों को सुनता आ रहा था।
इस शोर के बारे में उस दिन पंडित जी ने मंगलू को भी सब कुछ बता दिया था। वह बोले थे, ‘‘मंगलू गोमती की कुंडली यही कहती है कि उसकी शादी के बाद भी वह अकेली ही रह जाएगी और दूसरी बात उसके बाद उसके माँ-बाप भी न रह पाएँगे। यह संयोग बडा भयंकर है।’’
मंगलू अब हमेशा पंडित जी की गोमती की कुंडली के बारे में कही बातों पर सोचता रहता था। कुछ दिनों के बाद दूर किसी गांव के एक बहुत बडे पंडित के पास गोमती की शादी की कुंडली को मिलाने चले गए। जब वे लौटे तो बडे उदास से लगे। मंगलू को बुला कर पंडित जी बातांे -बातों में कहते रहे ‘‘अब समय आ तो गया है कि इस लडकी की शादी का, पर साथ में एक समय और भी आ गया है।’’
पंडित जी के मन की बात मंगलू तब समझ तो गया पर कुछ नहीं कर सकता था। बडे पंडित जी अपने छोटे भाई से भी बहुत चितंन करते रहे गोमती और उसके ग्रहों की दशा के बारे में। उसकी कुंडली का मिलान भी कर दिया, किसी पंडित लडके के साथ। मंगलू ने गंगा पार के उस गाँव के बारे में सिर्फ कुछ शब्द ही सुने और वह चुपचाप शमशानघाट वाली कुटिया में चला गया। उसने रात को खाना भी नहीं लिया और चुपचाप सोने की कोशिश करने लगा। दूर गंगा में सितारों की रोशनियों और पूर्णिमा के चाँद की रोशनी आपस में मिल कर नहा रही थी। उसने उन रोशनियों को अनदेखा कर दिया। अगले दिन मंगलू सुबह जल्दी ही उठ गया। वह गंगा पार के जंगलों की ओर कुल्हाडी लेकर नाव को चप्पू मारता निकल गया। नाव अभी आधे पानी तक पहुँची थी कि उसका जैसे मन किया कि गंगा मैया बाहर आ कर उसे आने वाले समय की कहानी सुना दे वो कहानी जो बडे पंडित की उदासी में छुपी है पर गंगा की लहरों ने कुछ नहीं बताया। मंगलू ने एक लम्बी साँस ली और गंगा की लहरों को देखने लगा। उसकी नाव बिना पतवार के दूर तक बह गई थी।
जब तक वो विचारों से जागा नाव काफी नीचे बह चुकी थी। इसके बाद उसे बहुत जोर लगाना पडा नाव को सही रास्ते की और लाने के लिए। पास से दो नावें गुजरीं। राम नाम सत्य का उच्चारण करते कोई 15 -20 लोग उसके सामने से निकलते जा रहे थे। आज फिर कोई…….. पर बडे पंडित जी आज सब सँभाल नहीं पाएँगे उसके बिना। वह बिना देर किए उनके पीछे – पीछे हो लिया। नावें बिल्कुल उसी शमशान घाट के पास रुकीं, जहाँ मंगलू का डेरा है और इन लाशों का अंतिम विश्राम गृह, उसके बाद उन्हें दूर गंगा मैया संग लंबी यात्राओं पर निकल जाना होता है।
गोमती की शादी के दिन नजदीक आ रहे हैं और मंगलू को बहुत से काम करने थे अभी। शादी का दिन आ गया। दुल्हन गोमती ने नाव से अपना पंाव जब नीचे जमीन पर रखा तो नाव थोडा डगमगा गई, ठीक उसी तरह, जिस तरह मंगलू का मन कई बुरे ख्यालों से डगमगा जाता रहा है अब तक। गोमती बहुत दूर चली गई और उसने मुडकर इस बार गंगा की लहरों को नहीं देखा। मंगलू ने नाव वाले को वापिस चलने का इशारा किया, ‘‘चलो भाई, अपने घर।’’
नाव वाला अपने आपको नहीं रोक पाया। वह नाव चलाते ही बोल पडा, ‘‘बडे पंडित की लडकी दुल्हन के जोडे में साक्षात् गंगा मैया लग रही है मंगलू भाई!’’
मंगलू ने आँखें बंद करके अपनी स्मृति में कभी गंगा मैया तो कभी गोमती को चित्रित किया तो उसे सिर्फ गोमती ही दिखाई दी। वही गोमती जो सदा गंगा घाट की पौडियों पर गंगा को निहारती हुई बैठी रहती थी।
पंडताइन आज सुबह से मीठे पकवान बना रही है। वह मंगलू से बोली, ‘‘आज गोमती से मिलने जा रहे हैं और आते हुए बात बनी तो उसे दो – चार दिन के लिए ले भी आएँगे। तू जरा सारा सामान नाव तक छोड आइयो।’’
एक खुशी की लहर सी उठी मंगलू के मन में। वह दौडता हुआ चला गया घाट पर सामान छोडने। बडे पंडित सुबह से ही पूजा गृह में मंत्र उच्चारण कर रहे हैं मंगलू के वापिस आते ही पंडताइन बोली, ‘‘मंगलू देखना तो पंडित जी उठे हैं या नहीं। आज पता नहीं क्यों सुबह से ही पूजा गृह में बैठे हैं।’’
मंगलू अभी पूजा गृह में झाँकने ही लगा कि अंदर से पंडित जी की आवाज आ गई, ‘‘आ जाओ अंदर मंगलू।’’ मंगलू अंदर से काँप उठा। वह बुदबुदाया, ‘‘ब्राहमणों के पूजा गृह में! घोर पाप ! क्या आज पंडित जी सठिया गए हैं?’’ फिर से आवाज आई,‘‘ आ जाओ मंगलू।’’
वह डरते – डरते पंडित जी के पास बैठ गया। पंडित जी ध्यान से जागकर बोले, ‘‘मंगलू तुम अपने मन की पवित्रता को कभी खोने न देना। गंगा मैया का रूप व उसकी पवित्रता को अपने ध्यान व समृति से ओझल मत होने देना। गंगा मैया ने तेरे वर्तमान व भविष्य की रेखाएँ पहले से खींच दी है। जिंदगी के उतार चढाव निश्चित है अपने आनंद में जीना। तुम ब्रह्मयोगी बनोगे। लोग तुमसे मिलने दूर – दूर से आएँगे। तुम्हारा नाम इज्जत से लिया जाएगा बस जो होगा उसे स्वीकार करने की हिम्मत न खोना।’’
पंडित जी उठ खडे हुए और जल्दी से बाहर की ओर चल पडे। ‘‘चलो पंडताइन जी, समय हो गया है चलने का।’’
बस यही आखिरी शब्द थे जो मंगलू के कानों में पडे थे और फिर सदा के लिए खामोशी में बदल गए थे शब्द। पंडित और पंडताइन गोमती के दर्शन नहीं कर पाए। उनकी नाव गंगा की गहराइयों में डूब गई थी। मंगलू व घाट के कई लोगों ने लाशों को ढूँढकर अंतिम संस्कार करवा दिया। गोमती पर दुखों का पहाड गिरा और कुछ वर्षों के बाद ही उसके गृहस्थ जीवन में फिर एक भूचाल आया। जो पंडित जी की ज्योतिष विद्या पहले ही सांकेतक रूप में कह चुकी थी। गोमती के पति की गृहस्थ जीवन से विरक्ति हो गई। अपनी दूध मुंही बेटी को देखकर भी उसके इरादे नहीं बदले। गोमती के मन में वेदनाओं का शोर बढता गया। उसके पति हिमालय की ओर तपस्वी साधु के वेश में दूर जा चुके थे। गोमती अब अपनी बेटी की मासूम खुशियों को सँभालती रही। कुछ दिनों के बाद गोमती को उसके चाचा एक दिन अपने साथ माइके ले आए। बोले, ‘‘बेटी मेरी भी तो कोई संतान नहीं है। मैं मर गया तो तू ही मेरे अंतिम संस्कार के मंत्र पढना, तेरे पिता की भी यही इच्छा थी, भाग्य को भी यही मंजूर होगा।’’
चाचा ने गोमती को दाह संस्कार के मत्र सिखाने की कोशिश की। पहले तो वह मना करती रही पर जब पिता की इच्छा फिर जहन में आई तो एक दिन वह उस पुस्तक को ले जाकर शमशान घाट पर जाकर मंत्र याद करने लगी। गोमती संस्कृत की पढाई कर चुकी थी। उसे मंत्रोच्चारण में कोई परेशानी नहीं हुई।
एक दिन गोमती के चाचा ने ऐलान कर दिया, ‘‘घाट पर अब दाह संस्कार में अपने चाचा के संग गोमती मंत्र पढेगी।’’
गाँव – गाँव में धर्म की परम्पराओं के संबधों का शोर मचा। बडे – बडे धर्म के रक्षकों ने धर्म की प्रतिष्ठा से आंतकित होकर दुहाई दी, पर चाचा अपने निर्णय से टस से मस नही हुए। वह दिन भी आया। जब गोमती अपने चाचा के साथ किसी के दाह संस्कार में ऐसे मंत्र पढ रही थी कि ऐसा मंत्रोच्चारण कोई ज्ञानी पंडित भी नहीं पढ पाया होगा। स्पष्ट आवाज, मर्यादामयी कार्य प्रणाली, सब गाँव वाले गोमती से प्रभावित हो गए। एक दिन गोमती के लिए दुखों का तूफान फिर उठा और उस तूफान की नजर गोमती के चाचा पर पड गई। मंगलू गंगा की गहराई से तो निकल आया था पर गोमती के चाचा नहीं। चाचा के दाह संस्कार में गोमती ने दुखी मन से अन्य पंडितों को दाह संस्कार के मंत्र पढने से मना कर दिया और स्वयं मंत्रोच्चारण के बाद चिता को मुखग्नि दी। गोमती के चाचा की चिता की आग शांत होने के साथ ही परम्परावादी धर्म रक्षकों का क्रोध भी शांत हो गया। अब गाँव के लोग उसकी बहादुरी व जजबात की प्रशंशा करने लगे और उसके काम के भी कायल हो गए। गोमती की चर्चा दूर – दूर तक फैल गई।
चाचा के दाह संस्कार के बाद गोमती कभी ससुराल वापिस नहीं गई और न ही पतिदेव हिमालय से तपस्या करके लौटे उसे ले जाने। अब गोमती की जिंदगी शमशानघाट, गंगाघाट और सैकडों धर्म -कर्म की पुस्तकों के बीच गुजरने लगी। वह गंगाघाट की पंडताइन गोमती नाम से मशहूर हो गई। लोग तो यहाँ तक कहते हैं कि जिसका भी दाह संस्कार गोमती और गंगा के मिलन से हो गया समझो वह स्वर्ग में पहुँच गया। गौमती की चाची भी नहीं रही है। अब पंडताइन गोमती के शमशानघाट पर रोज दर्जन भर दाह संस्कार होते हैं कोई 20 पंडित काम करते हैं। सब के सब उच्च कोटि के विद्वान हैं दर्जनों लडके कर्मकांड की शिक्षा लेने गोमती के आश्रम में आते हैं।
गोमती सिर्फ दिशा निर्देश देती है। उसकी बेटी गंगा भी संस्कृत की पढाई पूरी कर रही है। मंगलू बूढा हो गया है वह शमशान घाट वाले आश्रम में रहता है, न उसकी शादी हुई और न ही वह यह घाट छोड कर गया। गंगा मैया की सेवा ही उसकी भक्ति रही। बस गोमती व गंगा मैया की शाश्वत छवी के सहारे ही उसने अपना पूरा जीवन बिता डाला, गोमती के साए की मिट्टी को ही वह अपना ईश्वर मानता और उसे ही अपनी कर्म पूजा।उसके अधीन पाँच – छह लोग काम करते हैं जो लकडियों व नावों का बंदोबस्त करते है। बस एक आवाज से ही सब को सारी की सारी खुशियाँ मिल जाती है वह गोमती की बेटी गंगा की आवाज। वह मंगलू को बाबा कहती है और मंगलू उसे बेटी।

— संदीप शर्मा

*डॉ. संदीप शर्मा

शिक्षा: पी. एच. डी., बिजनिस मैनेजमैंट व्यवसायः शिक्षक, डी. ए. वी. पब्लिक स्कूल, हमीरपुर (हि.प्र.) में कार्यरत। प्रकाशन: कहानी संग्रह ‘अपने हिस्से का आसमान’ ‘अस्तित्व की तलाश’ व ‘माटी तुझे पुकारेगी’ प्रकाशित। देश, प्रदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कविताएँ व कहानियाँ प्रकाशित। निवासः हाउस न. 618, वार्ड न. 1, कृष्णा नगर, हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश 177001 फोन 094181-78176, 8219417857