चालीसा
कवि मनोरंजन प्रसाद सिंह की ‘सब कहते हैं कुँवर सिंह तो बड़ा वीर मर्दाना था’ शीर्षक लंबी कविता कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान रचित ‘खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसीवाली रानी थी’ शीर्षक कविता की पैरोडी नहीं थी।
इन दोनों कविताओं का स्वतंत्र अस्तित्व है, तभी तो दोनों कविताएँ विद्यालय से लेकर विश्वविद्यालयों की कक्षा-पाठ्यक्रमों में शामिल रही हैं।
‘कोरोना चालीसा’ में कोरोना से संबंधित तथ्यों के अतिरिक्त किसी भी बिम्बों को समाहित नहीं किया है, इसलिए यथाप्रसंग को ‘धार्मिकता’ से जोड़ना बगैर समझ लिए अतार्किकता ही कही जाएगी !
‘कोरोना चालीसा’ विशुद्ध साहित्य है, उसे इसी लिहाज से पढ़िये/सुनिए और कोरोना कहर से बचने के लिए ‘फिजिकल डिस्टेंसिंग’ सहित सुरक्षित और संयमित जीवन अपनाइये ! यथा-
ध्यानचंद के फ़ेवर में
मजबूत लॉबी
और पॉलिटिकल पॉवर होती,
तो निश्चितश: उन्हें
‘भारत रत्न’ मिल गयी होती !
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रुपये-पैसे से
आप
महाजन कहला सकते हैं,
महान नहीं !
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अंधविश्वास भी
एक श्रद्धा है,
अंधश्रद्धा लिए !
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विचारों और स्वभावों में
पत्नी तो
‘दूरदर्शन’ होती हैं !