स्नेह से लिपटी दरियादिली
जीवन की पहली शिक्षिका,
रसोई से होते हुए
देश दुनिया को
अपने आँचल से समेटने की
जी तोड़ कोशिश में लगी हैं ।
उनकी खुशबू भरी एहसास,
स्नेह से लिपटी दरियादिली,
उमस सीजन को भी
ठण्डाई देती है, माँ !
ना जाने कितने लम्हों से
जुड़ी हूँ तुमसे,
कुछ पल और जोड़ लेती !
दिवास्वपन सा लगता
तेरा साथ,
तुम हो तो होऊं मैं।
ज्ञान की अविरल धारा हो
और हो प्रभा सी किरण….
उन किरणों के तेज से ही
बनी मेरी यौवन।
हमेशा रोका हमें
अज्ञात पथ पर जाने से,
खुद भविष्य द्रष्टा की
प्रहरी बन खड़ी रही।
आज तुम्हारी भूमिका
समाजवरण कर रही है,
किन्तु हम भूल गए हैं
कि हमारा विकास,
उत्थान तुम्हीं से है,
क्योंकि तुम्हीं प्रकृति की
उदात्त चेतना जो हो।
हाँ, माँ तुम्हें प्रणाम !