गज़ल
झूठी मुस्कुराहट चेहरे पर सजाए हुए
हम लौट आए अश्कों को दबाए हुए
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तेरी निगाह-ए-करम की उम्मीद दिल में लिए
कब तक बैठते तेरे दर पे सर झुकाए हुए
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न जाने कैसी आग तू लगाता है ए इश्क़
न जी सकें न मर सकें तेरे जलाए हुए
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गले जब उनसे मिलो तो संभल के मिलना तुम
वो आस्तीं में हैं खंजर कई छुपाए हुए
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गैरों को अपना बनाने की कोशिशों में यहां
जो अपने थे धीरे-धीरे सब पराए हुए
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आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।