बकरापुर की होली
भाग घरों में दुबके बकरे, अपनी जान बचाते
छूट गये उनके हाथों से गुब्बारे, पिचकारी
पड़ा रंग में भंग, हाय! आयी ये आफत भारी
गली-गली में लगी घूमने शेरों की वह टोली
“कब तक खैर मनाऊँ बेटे!” बकरे की माँ बोली
देख रही थी सबकुछ डाली पर बैठी गौरैया
उसने विनती की शेरों से – मेरे प्यारे भैया
इन बेचारों के उत्सव को शोक बना मत डालो
पशु-पशु भाई-भाई होते, सबको गले लगा लो
शेर ठठाकर हँसा और बोला – गौरैया बहना
डरना हमसे छोड़ सुनो क्या है हम सब का कहना
नहीं किसी को खाने आयी यहाँ हमारी टोली
आज खेलने आये हैं हम तुम सब के संग होली