सामाजिक

हिंसा का हिस्सा नहीं, समाधान बनकर तो देखिये

बिल्कुल सही कहा आज के सीधा प्रसारण मे हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री जी ने राज्यसभा की बैठक से कि *हिंसा का हिस्सा नहीं बनें बल्कि हिंसा का आप एक समाधान बनें*वाकई उनका कहा एक-एक शब्द कानों मे जैसे एक चेतना सी उत्पन्न कर,सबका जैसे हौसला बड़ा रहा था कि यदि विपदा मे हम सब साथ हैं अगर तो हर एक चुनौतियों का सामना करना भी हमारे लिये सहज़ हो जाऐगा।सच बचपन मे एक सीख भरा पाठ सबने पढ़ा ही है, कि यदि एक ही लकड़ी को तोड़ा जाऐगा तो वो सरलता से टूट ही जाएगी परंतु यदि बहुत सी लकड़ियों को एक साथ बांध कर तोड़ने का प्रयास किया जाऐगा तो इस बंधे हुए लकड़ी के बंडल को तोड़ना असंभव सा हो जाता है।ठीक उसी तरह ये सीख हमारे भारत देश की तपोभूमि पर भी लागू होती है।यदि भारत देश की जनता मे एकता नहीं होगी तो भारत देश को कोई भी विरोधी देश तितर-बितर कर छिन्न-भिन्न कर सकता है।यदि ठीक इसके विपरीत हमारे देश मे एकता,स्नेह की गंगा सभी के बीच बहेगी तो किसी मे भी हिम्मत नहीं होगी की हमारे भारत देश की तपोभूमि पर आंख भी उठा कर देख सके।बल्कि की भारत देश की एकता की ओर कोई भी आंख उठाने से पहले दस बार सोचेगा।यदि किसी ने अज्ञानता वश ये दुस्साहस किया भी तो उसे सिर्फ़ और सिर्फ़ मुंह की पटकनी ही खानी पड़ेगी।
एकता मे बहुत ताकत है ये बात समझना बहुत जरूरी है चाहे देश के उच्च पद पर आसीन पदाधिकारी हों या कोई भी आम इंसान हो हर किसी को एकता का महत्व समझना बहुत जरूरी है आज हमारे देश मे इतना बड़ा जलप्रलय जो आया है आप वहां पर रहने वाले लोगों की दुर्दशा के बारे मे जरा इत्मीनान से सोचें किस कदर वो लोग मिल के सभी एकता संग हमारी भारतीय सेना का साथ देते हुए उस त्रासदी मे खोऐ अपने या दूसरे लोगों के अपनों की तलाश मे एक उम्मीद की किरण जलाते हुए निरंतर प्रयास मे लगे हुए हैं ताकि किसी के घर का सहारा अभी भी शायद उनके घर का सहारा बना रहे।ना कि अपने मन मे किसी प्रकार का भेदभाव ला रहे हैं और ना ही आपसी दुश्मनी की तलवार लटकाऐ हुए एक दूसरे को काटने पर उतारू हो रहे हैं।इंसानियत और मानवता का परिचय ऐसी विपदाओं मे बेबद जरूरी भी होता है।
ठीक इसके विपरीत यदि हम आज के *किसान आंदोलन*के विषय को लेते हुए एक बार दूर दृष्टि डालें तो हमें साफ-साफ उसमें साज़िशों की गंध का आभास होता रहेगा।जिस बिल के पारित होने मे किसानों को बहुत ही अधिक भला है उसी बिल को गलत ठहराते हुए कुछ-एक पक्ष इस बिल के विरोध मे सामान्य सी बात को तूल पकड़ाते हुए देश की एकता को भंग करने पर तुले हुए हैं।जहां एक ओर हर किसी के दिल मे देश के प्रति अमन,चैन,एकता की भावना को लाने और शांति बनाने का निरंतर आग्रह किया जा रहा है ठीक उसके विपरीत ही देश मे कुछ पक्ष ,देश के अहित करने के लिये तुले हुए हैं।क्या मिलेगा आखिर देश मे उपद्रव फैलाकर,क्षति पहुंचाकर?सिर्फ़ खुद को झुकने नहीं देना सही निर्णय के आगे जानते हुए भी ये कहाँ तक औचित्य है।
आज जब मैं टेलीविजन के माध्यम से सीधा प्रसारण राज्य सभा का देख रही थी तो किस कदर हमारे दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र से होने वाले सरकारी कोष के 28 प्रतिशत फिसदी आमदनी के बारे मे बता सभी को हतप्रभ कर दिया गया।सच कितनी विवेकता और सहजता से बताया गया कि हमारे भारत देश की प्राइवेट कम्पनियों और कार्पोरेट कंपनियों द्वारा दुग्ध को पशुपालन करने वाले लोगों से खरीद लिया जाता है और कितने ही बड़े पैमाने पर प्राइवेट कम्पनियां इसका व्यवसाय कार्पोरेट कम्पनियों के साथ मिल के कर रही है।और दोनों कि सहमति,समझदारी के चलते ही ये आज भी संभव हो रहा है।यदि हमारे देश मे भी कोई निर्णय लिया गया है बिलों के पारित करने के लिये तो उसमें कोई ना कोई हमारा ही फायदा इसमें सम्मलित होगा।यहां जब हमारे ही हित को रखकर हमारे ही हक के मुनाफ़े के बारे मे विचार कर कार्यकारिणी बैठक द्वारा कुछ अहम निर्णय लिये गये तो इन अहम़ निर्णयों का विरोध करने वाले लोग जो सही समझते इस बिल पारित को तो उनको भी पथभ्रमित कर देश और कार्यकारिणी के द्वारा लिये गये निर्णयों के विरुद्घ खड़ा कर देश की एकता मे छेद करने का कार्य निरंतर प्रयास किया जा रहा है।एक तरफ जहां लगता है कि अब की बैठक मे सफलता ही हासिल होगी ,तुरंत कैसे फेर बदल हो जाता है बैठक के अंतर्गत कैसे अहम़ फैसलों पर ही बवाल उठा कर विरोध प्रदर्शित करना शुरु कर देते हैं।आज ऐसा लग रहा है कि इंसान मे खुद के अच्छे बुरे के बारे मे सोचने समझने की शक्ति ही नहीं रह गई है।वह दूसरों के हाथों की कठपुतली बन कर बस जैसा कहे या जैसा करें वही करता जा रहा है।सही दिशा मे जा रहे इंसान को भी ,गलण दिशा की ओर मोड़ दिया जा रहा है।अपनी सही राह और सही दिशा का चयन खुद करके देखिये एक बेहतरीन परिणाम आपके सामने खुद नज़र आऐगा।
हम सभी देश वासियों को सीख लेते हुए इसी तरह विपदाओं मे एक दूसरे का साथ निभाते हुए एकता की मिसाल कायम़ करते रहना चाहिये।देश की एकता को तोड़ने वाले ऐसे बहुत से आतंकवादी है जो बाहरी सीमाओं से आकर हमारे देश को विभक्त करने मे कोई भी कसर नहीं छोड़ते वो किसी ना किसी माध्यम से ही देश के हमारे एक बेहतरन हिस्से को हमसे पृथक कर हड़पना चाहते हैं।परंतु यहां हमारी ही एकता और समझारी ही है जो इन दुश्मनों की चाल को सफल नहीं होने दे रही है।सच कुछ ही शब्दों मे बहुत बड़ी बात कह के समझाया गया कि हिंसा का हिस्सा नहीं, बल्कि हिंसा का इंसानों समाधान बन दूसरों का सही मार्गदर्शन कर देश की हर एक प्रगतिशील गतिविधियों मे साथ देते हुए देश की एकता का परचंम विदेशों मे भी लहरा दो।यही संदेश जन-जन मे एकता संग फैलाना है।साथी आओ हम सभी को मिलके कदम बढ़ाना है।देश के उत्थानों मे योगदान देकर सफर हर उत्थान बनाना है।साथी हाथ बढ़ाना है।

— वीना आडवानी

वीना आडवाणी तन्वी

गृहिणी साझा पुस्तक..Parents our life Memory लाकडाऊन के सकारात्मक प्रभाव दर्द-ए शायरा अवार्ड महफिल के सितारे त्रिवेणी काव्य शायरा अवार्ड प्रादेशिक समाचार पत्र 2020 का व्दितीय अवार्ड सर्वश्रेष्ठ रचनाकार अवार्ड भारतीय अखिल साहित्यिक हिन्दी संस्था मे हो रही प्रतियोगिता मे लगातार सात बार प्रथम स्थान प्राप्त।। आदि कई उपलबधियों से सम्मानित