अग्नि परीक्षा
आखिरकार मन्नू और मधुमति मिल ही गए!
कितना अर्सा बीत गया!
”14 साल क्या कम होते हैं? सीता-राम भी तो 14 साल बाद मिल पाए थे. उसके बाद हुई थी बिना किसी अपराध के सीता की अग्नि परीक्षा! इसे आज तक कोई भी नारी भुला नहीं पाई. क्या मुझे भी अग्नि परीक्षा देनी पड़ेगी!” मधुमति का मन डोल रहा था.
”अग्नि परीक्षा तो हम दोनों की हो चुकी है. एक ही देश में रहते हुए भी हम किसी-न-किसी वजह से मिल नहीं पाए, यह क्या किसी अग्नि परीक्षा से कम था! तुम अब भी मेरा विश्वास हो. यह भी जिंदगी का एक रंग है.” मन्नू ने उसे गले लगाते हुए कहा.
मधुमति का रोम-रोम रोमांचित और हर्षित हो उठा.
”एक ही डाल पर रहते हुए भी जैसे चकवा-चकवी सारी रात मिल नहीं पाते, वैसे ही हम भी शायद इस अग्नि परीक्षा के लिए अभिशप्त थे.” दोनों के मन के किसी कोने में एक विचार उमड़ रहा था.
अजीब विडंबना है, कि एक ही डाल पर रहते हुए भी चकवा-चकवी सारी रात मिल नहीं पाते! नारी मन की अग्नि परीक्षा की टीस की घातकता नारी ही जान सकती है!