नज्म
दिल की हालत क्या है, कैसे बताएं उलझन बड़ी है,
बताई भी नहीं जाती, छिपाई भी नहीं जाती.
दिल तो आईना है, खुद ही सब दिखा देता है,
ये वो शै है अलम की जिसको, छुपम-छुपाई भी नहीं आती.
ग़म के मारों से क्यों पूछते हो, तुम्हें ग़म क्या है,
ग़मगीनों का आलम है यह, कि उन्हें रुलाई भी नहीं आती.
कभी खुद से भी पूछ लिया करो, अपने दिल की अलमस्ती,
महज औरों की मस्ती से, संजीदगी नहीं आती.
है ज़र्रे-ज़र्रे में नूर जब उसका, फिर अपना क्या पराया क्या,
समझ यह बात आ जाए ‘गर तो, उलझन पास नहीं आती.