नज्म
अजीब नादां हो तुम भी नादानियों की हद करते हो,
बेवफाई तक का जिन्हें शऊर नहीं, उनसे वफा की उम्मीद करते हो.
कैरम की गोटियां तो संभाली नहीं जातीं तुमसे,
समय की कीलियों को साधने की जिद्द करते हो.
कितनी खूबसूरती से मुझी को गैर कह दिया,
अपनापन निभाने की बात शिद्दत से करते हो.
ग़मों की आंधियों से लड़ने की सूरत मिले कैसे,
मुस्कुराने तक में सिरे से किफायत करते हो.
खुद पर इनायत करने का कभी ख्याल तक नहीं आया,
खुदा की अकीदत करने को इबादत कहते हो.