गीत/नवगीत

नहीं, जानता कहाँ बसन्त??

नहीं पूर्ण मैं, लगा हलन्त्!
नहीं, जानता कहाँ बसन्त??

सर्दी पीड़ित है तन-मन।
कोहरे से ढका हुआ जन-जन।
भाव बर्फ से आज जमे,
जीवन पथ दिखता निर्जन।
जीवन में है लगा हलन्त्!
नहीं, जानता कहाँ बसन्त??

बचपन भी तो जी न सका।
दो घूँट प्रेम के पी न सका।
कठोरता को नित झेला,
मैं खिलता बचपन दे न सका।
अनुशासन बन गया हलन्त्!
नहीं, जानता कहाँ बसन्त??

पास में जब कोई आया।
सिद्धान्तों का राग सुनाया।
गले किसी को लगा न सका,
कदम-कदम धोखा खाया।
अपराधी बन गया सन्त!
नहीं, जानता कहाँ बसन्त?

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)