हमारे बुजुर्ग : अनमोल संपदा
तेजी से बदलती देश-काल परिस्थिति के साथ एक अवांछित कुरीति हमारे समाज में पैठ बनाती जा रही है, वो है ‘परिवार का विघटन’। बीते तीन चार दशकों से संयुक्त परिवारों का तेजी से विघटन हुआ है और अब ‘निजता’ के नाम पर एकल परिवारों में भी एकांतता पसर रही है। इन सबका तत्कालरुपेण सबसे बुरा प्रभाव पड़ा है परिवार के वृद्धों पर। एक समय घर के मुखिया रहे वृद्ध अचानक ही हाशिए पर रख दिए जा रहे हैं। जिस समय उन्हें अपने परिवार की सबसे अधिक जरूरत होती है, उसी समय उपेक्षा और एकाकीपन मिल रहा है। तेजी से बढते प्रौढ केंद्र इसके परिचायक हैं जो कि चिंतनीय है।
हमारी सनातनी संस्कृति में “परिवार” समाज का आधारभूत इकाइ रहे हैं और परिवार के बुजुर्ग सर्वमान्य श्रेष्ठ। इस सामाजिक संरचना का ही परिणाम रहा कि हमारी सभ्यता में तमाम अभावों के बाद भी आत्महत्या, तनाव, एकाकीपन जैसी मानसिक समस्याएं नहीं के बराबर रही।
कहते हैं, संपत्ति कितनी भी अर्जित कर ली जाए, उसका सुख भोगने के लिए उत्तम शारिरिक, मानसिक स्वास्थ्य और परिवार नितांत आवश्यक है। अभी ऐसे कई उदाहरण देखने को मिलते हैं जहां तमाम सुख सुविधाओं के बाद भी युवा छोटी छोटी असफलताओं पर आत्महत्या जैसे घातक कदम उठा रहे हैं। लोग अनेकानेक मानसिक रोगों के शिकार हो रहे हैं। यदि इन सबके मूल में जाएं तो हम पाएंगें एकल परिवारों का चलन और बढती एकांतता इसके मुख्य कारण है।
घर के बुजुर्ग घर के सदस्यों को न केवल स्नेह देते हैं वरण अनवरत संबल और उत्साह देते हैं। बच्चों और युवाओं को अपने मन को खोलने का एक सहज अवसर होते हैं ये। इनके जीवन के वास्तविक अनुभव कठिन परिस्थितियों में भी घर का वातावरण सामान्य बनाने में सफल होते हैं। ये धुरी बन जाते हैं जिसके चारों ओर सारा परिवार उमंग पाता है। सारे तीज त्यौहार पुर्णता और भव्यता पाते हैं। विश्वास मानिए इनके आशीर्वाद, इनके स्पर्श, इनके चुंबन, इनके सान्निध्य में जो सुख, शांति और ऊर्जा मिलती है वो कोई मनोचिकित्सक लाखों की फीस लेकर भी कभी नहीं दे सकता। और इन सबके लिए आपको केवल उन्हें अपना थोड़ा समय और थोड़ी परवाह देनी है। और आपका यही समय आपके वृद्धावस्था में आपके बच्चों में संस्कार के रूप में फिर आपको वापस मिलेगा।
निश्चित ही बदलते परिदृश्य में संयुक्त परिवारों का समायोजन बहुत कठिन है क्योंकि एक ही स्थान पर सभी को अपने अनुरूप रोजगार और अन्य सुविधाएं मिल पाना आसान नहीं। फिर भी हमें नए तकनीकों के माध्यम से ही सही यथासंभव अपने परिवारों को जोड़े रखना चाहिए विशेषकर बुजुर्ग सदस्यों को सदैव सम्मान और समय देना चाहिए। “परिवार” और “बुजुर्ग” वो अनमोल संपदा हैं जिनका मुल्य प्राय: खोने के बाद ही पता चलता है। इसलिए इन्हें सजोइए, जीवन सुखद, समृद्ध होगा।
— समर नाथ मिश्र