गीतिका/ग़ज़ल

शुक्रिया

बीच राह में छोड़कर जाने के लिए शुक्रिया
दर्द दे दे के मुझको रुलाने के लिए शुक्रिया।
मंजिल मुझे मिल ही गई जैसे-तैसे ही सही
मेरी राह में कांटे बिछाने के लिए शुक्रिया।
समय से सीख रखी थी तैराकी मैंने कभी
साजिशन मेरी नाव डुबाने के लिए शुक्रिया।
मेरा सबकुछ लुटा हुआ है पहले से ही यहां
मेरे घरौंदे में आग लगाने के लिए शुक्रिया।
दुख दर्द तुम न देते तो कलम चलती नहीं
ग़म-ए-घूँट मुझको पिलाने के लिए शुक्रिया।
— आशीष तिवारी निर्मल

*आशीष तिवारी निर्मल

व्यंग्यकार लालगाँव,रीवा,म.प्र. 9399394911 8602929616