इशारे
आज सीमा की जिंदगी असीम हो गई थी. फिर भी कभी-कभी स्मृतियां सीमाओं की याद अवश्य दिला जाती है. एक बार उसने पढ़ा था-
”कश्ती डाल दी हमने तूफानों में साहिल सहम गए,
हौसले देख हमारे लहरों के इशारे बदल गए.”
सचमुच उन दिनों वह बहुत सहमी हुई थी.
कभी भी डर को पास न आने देने और सबको हौसला बंधाने वाली सीमा के मन में अधैर्य का सागर हिलोरें ले रहा था.
”कितनी समस्याएं हैं मेरे जीवन में! कुछ भी तो ठीक नहीं चल रहा! अब क्या करना है जिंदा रहकर!” अक्सर वह सोचने लगी थी.
”रोशनी की कोई किरण भी तो दिखाई नहीं दे रही!” उसके मन का अंधेरा घना हो चला था.
तभी न जाने कैसे उसकी मुलाकात निमेष से हो गई. बिना पलक झपकाए निमेष उसकी नशीली-कजरारी आंखों को देखता ही रह गया.
”कितनी सुंदर हैं तुम्हारी आंखें! झील-सी गहरी. मन करता है इन आंखों के समंदर में डूब जाऊं!” निमेष के कहने पर सीमा देखती ही रह गई.
”ऐसे क्या देख रही हो! मैं तुम्हारा नाम तो नहीं जानता, पर इन आंखों की गहराई बता रही है, कि तुम्हारे अंदर प्रेम का कितना अथाह दरिया समाया हुआ है. क्या तुम मेरी वेलेंटाइन बनोगी?”
”आंखों के धोखे में मत रहो, कल तुम्हीं कहोगे कि इन आंखों से मैं धोखा खा गया. इनमें प्रेम का दरिया नहीं गमों का सागर समाया हुआ है.” सीमा ने उसके प्रस्ताव को टालने की कोशिश की थी.
”दरिया नहीं सागर ही सही, कुछ तो है न! मैं उसमें ही डूब जाऊंगा. एक मौका तो दो!”
वेलेंटाइन डे नजदीक आ रहा था था और वह उसकी वेलेंटाइन बन गई थी. फिर निमेष ने एक-एक करके उसकी सारी कमियों की खूबियां बयां कर दी थीं.
सहमी हुई सीमा की सोच असीम हो गई थी और लहरों के इशारे बदल गए थे.
कभी-कभी जीवन में इतना प्रेम मिलता है, कि खुद को लगने वाली सारी कमियां खूबियों में तब्दील हो जाती हैं और मौसम-तो-मौसम जीवन भी सुहाना हो जाता है.प्रेम की ताज़गी की तासीर लहरों के इशारे बदल देती है.