धुंध
जिंदगी के तूफानों से घिरकर जब घबरा जाते हैं
सुकून की एक छोटी सी वजह तलाशते हैं ।
बहुत गुरूर था कभी हमें जिनकी दोस्ती पर
न जाने क्यों आज वही हममें ऐब निकालते हैं ।
नहीं अच्छी लगती अब बच्चों जैसी शरारतें
न दिल को भाता है अब कोई भी मजाक
सारी दुनिया से थककर बस अक्स अपना
न जाने क्यों उनकी आंखों में तलाशते हैं ।
सपनों में भी अपने करीब जानकर दिल को तसल्ली होती है
न जाने क्यों आज वही दूर जाने के बहाने निकालते हैं
कभी तो समझा करो दिल के जज्बात
उनका यूँ मखौल तो उड़ाया न करो
न होंगे गर कल हम तो याद किया करोगे अक्सर
आज के अहसास को न जाने क्यों यूँ ही
मजाक में टालते हैं ।
वर्षा वार्ष्णेय