धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

सिक्किम का लेपचा समुदाय

सिक्किम में कंचनजंघा के निकट लेपचा समुदाय का निवास है I इन्हें ‘रोंग’ अथवा ‘मोन-पा’ भी कहा जाता है I वेलोग स्वयं को “रोंगकुप” कहते हैं I तिब्बती इन्हें “मोन” कहते हैं तथा भूटानी इन्हें “मेरी” कहते हैं I लेपचा सिक्किम राज्य के उच्च पर्वतीय घाटियों में विशेष रूप से कंचनजंगा पर्वत के निकट रहते हैं । कुछ लेपचा पश्चिम बंगाल के कलिम्पोंग और पड़ोसी देश भूटान और नेपाल में भी रहते हैं। लेपचा लोगों को हिमालय की कठिन तराई में जीवन निर्वाह करने का कौशल ज्ञात है I उनकी मातृभूमि को ‘मएल लाएंग’ के रूप में जाना जाता है जिसका अर्थ वास्तव में भगवान का आशीर्वाद होता है। ऐसा माना जाता है कि ‘लेपचा’ नेपाली शब्द ‘लेपचे’ से उत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ होता है ‘’व्यर्थ बोलनेवाला” अथवा अधम, नीच । यह पहले अपमानजनक उपनाम था, लेकिन अब इसे नकारात्मक रूप में नहीं देखा जाता है। लेपचा की उत्पत्ति के संबंध में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है । कुछ लोगों की मान्यता है कि वे म्यांमार, तिब्बत या मंगोलिया में उत्पन्न हुए हैं, लेकिन लेपचा लोग दृढ़ता से मानते हैं कि वे इस क्षेत्र के मूल निवासी हैं। वे तिब्बती- बर्मी भाषा बोलते हैं । इसके आधार पर कुछ नृविज्ञानी मानते हैं कि वे तिब्बत, जापान या पूर्वी मंगोलिया से आए थे । वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार सिक्किम में इनकी आबादी लगभग 9 % है। लेपचा लोग मांसाहारी होते हैं तथा गोमांस, सूअर मांस, बकरी आदि जानवरों के मांस खाते हैं I मक्का, गेहूं, बाजरा इनका मुख्य भोजन है I वे कंद – मूल, बांस का कोंपल और अनेक प्रकार की जंगली सब्जियाँ भी खाते हैं I सिक्किम के गाँवों में प्रातःकाल में मक्का, चिउरा, उबले आलू आदि के साथ लोग चाय अथवा मदिरा पीते हैं I दोपहर के समय येलोग भात, दाल, तरकारी और अचार खाते हैं I कुछ लोग मक्के अथवा कोदो या गेहूं की रोटी भी खाते हैं I येलोग रात्रि के भोजन में भी भात, दाल, तरकारी और अचार खाते हैं I ग्रामीण लोग मक्के का भात भी खाते हैं I धीरे– धीरे रात में लोग चावल की जगह रोटी खाने लगे हैं I लेपचा समुदाय द्वारा मदिरा का नियमित उपयोग किया जाता है I मदिरा का इनके दैनिक जीवन में प्रमुख स्थान है I इनके सभी संस्कारों– उत्सवों में मदिरा परोसी जाती है I लेपचा समुदाय में जातीय भेदभाव नहीं है, लेकिन जन्म और विवाह के आधार पर ये अनेक समूहों में विभक्त हैं I पिता की मृत्यु के बाद उसकी जमीन सभी पुत्रों के बीच बराबर भागों में बाँट दी जाती है जबकि माता के गहने बेटियों को दे दिए जाते हैं I पिता की मृत्यु के बाद माँ और बहन बड़े पुत्र के साथ रहती हैं I संपत्ति में महिलाओं को कोई अधिकार नहीं होता है I खेती में महिलाएं महत्वपूर्ण योगदान देती हैं I महिलाएं जलावन की लकड़ियाँ और पीने के लिए पानी लाती हैं तथा कताई– बुनाई करती हैं I लेपचा समुदाय की आजीविका का मुख्य साधन कृषि है I वे विभिन्न प्रकार की फसलें जैसे- मक्का, चावल, इलायची और सब्जियां उगाते हैं I वे बकरियां और सूअर भी पालते हैं। लेपचा लोग बहुत विनम्र और भद्र होते हैं I उनकी संस्कृति में आक्रामकता और प्रतिस्पर्धा का कोई स्थान नहीं है । लेपचा समुदाय की अपनी लेपचा भाषा है। लेपचा भाषा को “रोंगरिंग” कहते हैं I लेपचा भाषा को वर्ष 1977 में सिक्किम की राजभाषा का दर्जा दिया गया I स्कूल और कॉलेज स्तर तक लेपचा भाषा की पढाई होती है और इस भाषा में पाठ्यपुस्तकें भी तैयार हो चुकी हैं I आकाशवाणी से लेपचा भाषा में समाचार एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रसारित होते हैं I यह तिब्बाती- बर्मी समूह की भाषा है। लेपचा भाषा की अपनी लिपि है जिसे ‘रोंग’ या लेपचा लिपि कहा जाता है I यह तिब्बती लिपि से ली गई है । इसे 17 वीं और 18 वीं शताब्दी के बीच संभवतः सिक्किम के तीसरे चोग्याल (तिब्बती राजा) के शासनकाल के दौरान थिकुंग मेन्सालोन्ग नाम के एक लेपचा विद्वान द्वारा विकसित किया गया था । लेपचा पांडुलिपियों का सबसे बड़ा संग्रह नीदरलैंड्स के लीडेन में मिला है जहाँ 180 से अधिक लेपचा पुस्तकें उपलब्ध हैं ।
लेपचा समुदाय कई कुलों में विभाजित है जिनमें से प्रत्येक कुल अपने पवित्र झील और पर्वत शिखर की पूजा करता है I लेपचा मूल रूप से प्रकृतिपूजक थे और ‘मुन धर्म’ में उनका विश्वास था, लेकिन भूटानी लोगों के प्रभाव से अधिकांश लेपचा ने बौद्ध धर्म को अपना लिया I उन्होंने बौद्ध धर्म को अपना लिया, लेकिन अभी भी ‘मुन धर्म’ के कुछ लक्षण उनके आध्यात्मिक कार्यकलापों में शेष हैं I इसलिए कभी – कभी इनके धर्म को ‘प्रकृतिपूजक बौद्ध धर्म’ की संज्ञा दी जाती है I मिशनरी के प्रभाव से कुछ लेपचा परिवारों ने ईसाई धर्म को अपना लिया है। “तेन्दोंग ल्हो रुम फात” लेपचा समुदाय का प्रमुख त्योहार है जो प्रति वर्ष 8 अगस्त को आयोजित किया जाता है I आधुनिक लेपचा ने क्षेत्र के आधार पर स्वयं को चार वर्गों में विभक्त किया है I कलीमपोंग, कुरसियांग, मिरिक और दार्जिलिंग के लेपचा को “तमसंगमु” कहा जाता है जबकि सिक्किम के लेपचा को “रेनजोंगमु” कहा जाता है I लेपचा समुदाय की कुछ आबादी नेपाल के इलम जिले में निवास करती है जिसे “इलाम्मु” कहा जाता है और भूटान में रहनेवाले लोगों को “प्रोमु” कहा जाता है I लेपचा समुदाय में अधिकांश विवाह दुल्हन और दूल्हे के परिवारों के बीच बातचीत से तय होते हैं । यदि शादी निश्चित हो जाती है तो लामा द्वारा लड़के और लड़की की कुंडली की जांच की जाती है और शादी के लिए अनुकूल तारीख तय की जाती है । इसके बाद लड़के के मामा अन्य रिश्तेदारों के साथ खाड़ा, दुपट्टा और एक रुपया लेकर लड़की के मामा के पास जाते हैं एवं मामा की औपचारिक सहमति प्राप्त करते हैं। शुभ दिन को दोपहर में शादी होती है। दूल्हा और उसका पूरा परिवार कुछ पैसे और अन्य उपहारों के साथ लड़की के घर के लिए रवाना होता है I सभी उपहार दुल्हन के मामा को सौंपे जाते हैं। गंतव्य पर पहुंचने पर पारंपरिक ‘नोमोचोक’ समारोह होता है और दुल्हन के पिता रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए एक दावत का आयोजन करते हैं। धर्म की दृष्टि से लेपचा समुदाय बौद्ध धर्म का अनुयायी है I अठारहवीं शताब्दी में इस समुदाय ने बौद्ध धर्म को अपनाया I लेपचा लोग स्वयं को हिमालय की संतान मानते हैं I

*वीरेन्द्र परमार

जन्म स्थान:- ग्राम+पोस्ट-जयमल डुमरी, जिला:- मुजफ्फरपुर(बिहार) -843107, जन्मतिथि:-10 मार्च 1962, शिक्षा:- एम.ए. (हिंदी),बी.एड.,नेट(यूजीसी),पीएच.डी., पूर्वोत्तर भारत के सामाजिक,सांस्कृतिक, भाषिक,साहित्यिक पक्षों,राजभाषा,राष्ट्रभाषा,लोकसाहित्य आदि विषयों पर गंभीर लेखन, प्रकाशित पुस्तकें : 1.अरुणाचल का लोकजीवन (2003)-समीक्षा प्रकाशन, मुजफ्फरपुर 2.अरुणाचल के आदिवासी और उनका लोकसाहित्य(2009)–राधा पब्लिकेशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 3.हिंदी सेवी संस्था कोश (2009)–स्वयं लेखक द्वारा प्रकाशित 4.राजभाषा विमर्श (2009)–नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 5.कथाकार आचार्य शिवपूजन सहाय (2010)-नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 6.हिंदी : राजभाषा, जनभाषा, विश्वभाषा (सं.2013)-नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 7.पूर्वोत्तर भारत : अतुल्य भारत (2018, दूसरा संस्करण 2021)–हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 8.असम : लोकजीवन और संस्कृति (2021)-हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 9.मेघालय : लोकजीवन और संस्कृति (2021)-हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 10.त्रिपुरा : लोकजीवन और संस्कृति (2021)–मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 11.नागालैंड : लोकजीवन और संस्कृति (2021)–मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 12.पूर्वोत्तर भारत की नागा और कुकी–चीन जनजातियाँ (2021)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली – 110002 13.उत्तर–पूर्वी भारत के आदिवासी (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली– 110002 14.पूर्वोत्तर भारत के पर्व–त्योहार (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली– 110002 15.पूर्वोत्तर भारत के सांस्कृतिक आयाम (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 16.यतो अधर्मः ततो जयः (व्यंग्य संग्रह-2020)–अधिकरण प्रकाशन, दिल्ली 17.मिजोरम : आदिवासी और लोक साहित्य(2021) अधिकरण प्रकाशन, दिल्ली 18.उत्तर-पूर्वी भारत का लोक साहित्य(2021)-मित्तल पब्लिकेशन, नई दिल्ली 19.अरुणाचल प्रदेश : लोकजीवन और संस्कृति(2021)-हंस प्रकाशन, नई दिल्ली मोबाइल-9868200085, ईमेल:- [email protected]