बसंत
जब बसंत का मौसम आया ऐसी हवा चली।
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली..।।
नयी कोपले पेड़ और पौधो पर हरियाली.
उनके मुख मंडल की आभा गालो की लाली.।
चंचल चितवन उनकी नीरज खोजै गली गली।।
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली।
कोयल कूकी कुहू कुहू और पपिहा पिउ पीऊ ,
अगर न हमसे तुम मिल पाई तो कैसे जीऊ।
मै भवरा मधुवन का मेरी तुम हो कुंजकली ।।
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली.
बागन में है बौर और बौरन मां अमराई
कामदेव भी लाजै देखि तोहारी तरुनाई ,
तुमका कसम चार पग आवो हमरे संग चली.
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली..
हरी चुनरिया बिछी खेत में सुन्दर सुघड़ छटा ।
नीली पीली तोरी चुनरिया काली जुल्फ घटा ।
आवै फागुन जल्दी नीरज गाल गुलाल मली.
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली..
— आशुकवि नीरज अवस्थी