कविता

होली

प्रतिदिन प्रतिपल नवसंवत का,
तुमको मंगलकारी हो ।
घर आंगन द्वारे खेतों तक ,
खुशियों की फुलवारी हो ।
मीत प्रीति की रीत यही है ,
अमित अगाध नेह बांटो,
दो हजार इक्किस की होली,
सबको ही सुख कारी हो।

वात्सल्य देवर भाभी का,
युगो युगो तक बना रहे।
लता सहारा हरदम पाए ,
तना हमेशा तना रहे ।
जीजा साली के रिश्तो की ,
मर्यादा गुमराह न हो,
हर रिश्तो में जन जन का,
विश्वास अलौकिक बना रहे।।

— आशुकवि नीरज अवस्थी

आशुकवि नीरज अवस्थी

आशुकवि नीरज अवस्थी प्रधान सम्पादक काव्य रंगोली हिंदी साहित्यिक पत्रिका खमरिया पण्डित लखीमपुर खीरी उ0प्र0 पिन कोड--262722 मो0~9919256950