कभी न अन्धकार हो
रहे जहाँ सुहासिनी, कभी न अन्धकार हो
सफ़ेद रंग देख के, कलंक शर्मसार हो |
सभी समान भाव से,
रखे विचार भावना |
करें प्रयास जान से
जगे दिलों सुकामना |
सुगीत काव्य चेतना , सुहास का प्रसार हो
सफ़ेद रंग देख के, कलंक शर्मसार हो | 1||
समस्त दिव्य चेतना,
जगे सुसुप्त भावना ।
उमंग भाव हो घना,
रहे न द्वेष कामना ।।
जिजीविषा गवेषणा, प्रवास बेशुमार हो
सफ़ेद रंग देख के, कलंक शर्मसार हो |2||
तरंग में हँसी रहें
रमण करे सुकामना |
अधर्म के विनाश में
अमोघ पुन्य साधना |
न काग के प्रदेश में, न हंस पर प्रहार हो
सफ़ेद रंग देख के, कलंक शर्मसार हो |3||
असंख्य रिद्धि सिद्धियाँ,
सुमार्ग का विधान हो ।
रहें न और व्याधियाँ,
अदम्य धैर्यवान हो ।।
प्रबुद्ध शुद्ध भारती, सुजान बेशुमार हो
सफ़ेद रंग देख के, कलंक शर्मसार हो | 4||
– लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला