गीत/नवगीत

कभी न अन्धकार हो

रहे जहाँ सुहासिनी, कभी न अन्धकार हो
सफ़ेद रंग देख के, कलंक शर्मसार हो |
सभी समान भाव से,
रखे विचार भावना |
करें प्रयास जान से
जगे दिलों सुकामना |
सुगीत काव्य चेतना , सुहास का प्रसार हो
सफ़ेद रंग देख के, कलंक शर्मसार हो | 1||
समस्त दिव्य चेतना,
जगे सुसुप्त भावना ।
उमंग भाव हो घना,
रहे न द्वेष कामना ।।
जिजीविषा गवेषणा, प्रवास बेशुमार हो
सफ़ेद रंग देख के, कलंक शर्मसार हो |2||
तरंग में हँसी रहें
रमण करे सुकामना |
अधर्म के विनाश में
अमोघ पुन्य साधना |
न काग के प्रदेश में, न हंस पर प्रहार हो
सफ़ेद रंग देख के, कलंक शर्मसार हो |3||
असंख्य रिद्धि सिद्धियाँ,
सुमार्ग का विधान हो ।
रहें न और व्याधियाँ,
अदम्य धैर्यवान हो ।।
प्रबुद्ध शुद्ध भारती, सुजान बेशुमार हो
सफ़ेद रंग देख के, कलंक शर्मसार हो | 4||
– लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

जयपुर में 19 -11-1945 जन्म, एम् कॉम, DCWA, कंपनी सचिव (inter) तक शिक्षा अग्रगामी (मासिक),का सह-सम्पादक (1975 से 1978), निराला समाज (त्रैमासिक) 1978 से 1990 तक बाबूजी का भारत मित्र, नव्या, अखंड भारत(त्रैमासिक), साहित्य रागिनी, राजस्थान पत्रिका (दैनिक) आदि पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित, ओपन बुक्स ऑन लाइन, कविता लोक, आदि वेब मंचों द्वारा सामानित साहत्य - दोहे, कुण्डलिया छंद, गीत, कविताए, कहानिया और लघु कथाओं का अनवरत लेखन email- [email protected] पता - कृष्णा साकेत, 165, गंगोत्री नगर, गोपालपूरा, टोंक रोड, जयपुर -302018 (राजस्थान)