कहानी

कहानी – दुनिया का गम

आज न जाने क्यूँ खुद को बहुत ग्लानि महसूस हो रही थी ।सोचती थी कि भगवान ने मुझे ही इतना गम दे दिया हमेशा मुझे लगता था कि मैं ही बहुत दुखी स्त्री हूँ ।खुद की परेशानियाँ ही ज्यादा दिखती रही।
पता नहीं आज मुझे क्या हुआ कि खाना बनाने में आज फिर गलती हो गई आटे में नमक दोबारा डल गया।
बेटी ने जैसे ही रोटी का एक कौर खाया तो हाथ पैर पटक कर बोली क्या मम्मी कैसा खाना बनाया है आज ।कभी तो नमक डालना भूल जाती हो’ कभी ज्यादा डाल देती हो ।क्या हो गया आपको? बेटी के गुस्सा होने पर आज मुझे बहुत दुख हुआ ।पच्चीस सालों से इस घर में नौकरों की तरह काम करती रही और आज भी हमेशा सभी के कुछ न कुछ ताने सुनने ही पड़ते थे ।इसके अलावा नौकरी भी करती हूँ मेरे बारें में तो कोई सोचता ही नही कि मैं भी थक जाती हूँ ।एहसास न कराती हूँ तो क्या?मैं इंसान नही हूँ ,घर की छोटी बडी हर जिम्मेदारी के साथ साथ अपनी नौकरी में भी बहुत कार्य करना होता है ।ये कौन समझ पायेगा?पर फिर भी यही सोचती रही कि ये दुख भगवान का दिया हुआ है स्त्री बनाकर।हमेशा बस खुद को दुखियारी समझती रही।पर आज मुझे उस औरत को देख कर एहसास हुआ कि क्या वास्तव में बहुत दुखी हूँ? मेरी आत्मा ने मुझे इसका उत्तर दे दिया था।जब मेरे घर के सामने से उस औरत कीआवाज लगाना लेकिन वो औरत अकेली नहीं थी उसके साथ एक जवान बेटी भी थी।
फटे पुराने कपड़े पहने एक अधेड़ उम्र की महिला और बेटी अपने सर पर दो टोकरे लिए भटक रही थी उन टोकरे में चीनी के मग,फ्लावर पॉट थे दोनो आवाज लगाकर उन्हे बेचने के लिए पुकार रही थी ।
चीनी के कप ले लो,,,,,
जब दोनों माँ बेटी सुबह से कोशिश करते हुए मेरे दरवाजे के सामने से गुजरी तो मैं उस समय स्कूल के लिए निकल रही थी। अचानक मेरी नजर उनके टोकरे पर पड़ी ।मैने एसे ही सहज भाव से पूछ लिया कि ये मग कितने के हैं? उन्होने 80 रुपये के 6 बताए।उसके बाद मैं जाने लगी तो उन्होने टोकरे सर पर उताकर नीचे रखते हुए पूछा आप कितना दोगी? मैने कहा कि मुझे लेना नही है मैं तो बस एसे ही पूछ रही थी ।मगर उन्होने मुझे कहा कि आप कितना दोगी ले लो; बाइजी सुबह से बौनी नही हुई ।मुझे उन लोगों को देखकर दया आ गयी और मैने उनसे एक दर्जन मग 100 रुपये में ले लिये। उस समय मैने उनसे ज्यादा भाव की बहसबाजी नही की ।इसलिये नही की मुझे देरी हो रही थी।बल्कि इसलिये जब हम बाजार में दुकानों पर से कोई वस्तु लाते हैं तो भाव ज्यादा नही पूछते लेकिन जब कोई गरीब या बेबस व्यक्ति यही वस्तु बेचता है तो हम ये भूल जाते हैं कि ये सबसे ज्यादा मजबूर होकर सड़को पर गली गली भटकते हैं बडी मुश्किल से इनकी दो समय की रोटी की व्यवस्था हो पाती होगी। कम से कम ये चोरी या अपराध तो नही करते हैं ।उनकी मनोदशा को समझते हुए मैने न चाहते हुए भी उनसे मग ले लिये।लेकिन अपने अन्तर्मन में एक सुखद अनुभव ये हुआ कि क्या मैं इनके जैसी अपने बच्चों के दो जून की रोटी के लिए भटक रही हूँ क्या मैं अपने बच्चों को पढ़ने से वंचित कर रही हूँ ।आत्मा से बस यही आवाज आई हे भगवान मैं इनके जैसी मजबूर तो नही हूं फिर मुझे अपना गम ज्यादा क्यूँ लगा।आज मुझे उस अवतार फिल्म का एक गाना याद आ गया जो राजेश खन्ना जी पर फिल्माया गया था शायद आप सबको भी याद आ गया होगा
दुनिया में कितना गम है
मेरा गम कितना कम है।

— वीणा चौबे

वीणा चौबे

हरदा जिला हरदा म.प्र.