कविता

समय बदल गया, नारी बदली।

समय बदल गया, नारी बदली।
नहीं रही, अब रस की पुतली।
ऐसे-ऐसे कुकर्म कर रही,
घृणा को भी, आयें मितली।

प्रेम नाम ले, नित, नए, फँसाती।
सेक्स करो, खुद ही उकसाती।
धन लौलुपता, पूरी करने,
बलात्कार का केस चलाती।

शादी के नाम पर, जाल बिछाती।
झूठ बोल कर,  ब्याह रचाती।
पति कह, नर को, जी भर लूटे,
प्रेमी से मिल, उसे मरवाती।

कुकर्म घृणा के, करती ऐसे।
भाई-पिता भी, जीते कैसे?
सबको तनाव दे, मजे है करती,
रोज फँसा कर, जैसे-तैसे।

छल, धोखे से कर ली शादी।
खुद के मजे, पति की बरबादी।
दहेज के झूठे केस लगाकर,
सच ही, सच की, नींव हिला दी|

नर, नारी से डरता है अब।
बात राह में, करता है कब?
दुष्टा नारी, पीछा न छोड़े,
आत्म हत्या नर, करता है जब।

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)