ग़ज़ल
ज़िंदगी जिंदादिली को प्यार लिखना,
अजनबी को मत कभी हमयार लिखना।
अनछुए कोरे कपोलों की परिधि पर,
तर्जनी से यूँ नहीं श्रृंगार लिखना।
हैं शरम से लाल मेरे अनजुठे लब,
मत जुठाकर प्रीति का अभिसार लिखना।
नत नयन में ख़्वाब मत कोई पिरोना,
नींद में आकर नहीं अधिकार लिखना।
दे दखल ना तूँ मेरे हक में अवध यूँ,
मौन को मेरे नहीं स्वीकार लिखना।
डॉ अवधेश कुमार अवध