ग़ज़ल
भले हों कितने मतभेद आपस में सब भूलना है सही
जब बात वतन की तो आपस में लड़ना ठीक नहीं।
अपने स्वार्थ की खातिर क्यों समझोता हो करते,
कुछ गैरों के लिए अपनों को ही छलना ठीक नहीं।
वो ताक में हैं बैठे कब से तुम्हारी बर्बादी देखने को,
उनके इरादों को यूं हवा देकर बढ़ाना ठीक नहीं।
नफरतों के इस दौर की हकीकत तुम समझ लो,
बांट दें जो हमें आपस में ही वो तराना ठीक नहीं।
आओ मिलकर रहना अब सीख लें हम सब यहां,
घर के मुद्दे पे दुश्मन का बातें बनाना ठीक नहीं।
कामनी गुप्ता