माघी पूर्णिमा स्नान
मनिहारी में माघी पूर्णिमा स्नान :
संत रैदास के जन्मदिवस पर
‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ सदृश नमन….
माघ मास वसंत महोत्सव और मदनोत्सव लिए हैं ।
विद्या के साथ-साथ कामदेव का माह भी है यह ।
वसंत की पूर्णिमा को माघी पूर्णिमा कहते हैं ।
हर वर्ष गंगा माँ में स्नान के साथ
मनिहारी गंगा किनारे
यज्ञ रूपी ज्ञान गंगा कार्यक्रम
आयोजित होती है ।
वसंत पंचमी यानी सरस्वती पूजा पर
लगे मेले धरे-धीरे
गंगा किनारे लगने लगती है ।
इस माघी स्नान को सनातन धर्मावलंबियों के बीच
यज्ञ और अनुष्ठानपूर्ण तरीके से मनाये जाते हैं ।
ऐसे दिन प्रयागराज (इलाहाबाद) के संगम की तरह
मनिहारी में विदेशी-आस्थावलम्बियों की
भारी भीड़ जुटती है ।
माघी पूर्णिमा को
मनिहारी गंगा में
स्नान करने नेपाल, सुदूर दार्जिलिंग
और भूटान से भी आस्थावान आते हैं,
किन्तु यहाँ स्नान के लिए घाट सुव्यवस्थित ढंग से नहीं है ।
श्मशान घाट से सटे स्नान घाट होने के कारण
कई असहज वस्तुओं से
सामना करना पड़ जाता है,
वहीं घाट पर के विक्रेता पूजार्थियों से
फूल-पत्ती तक के
अनाप-शनाप रकम वसूल करते हैं,
तो स्नान करती महिला श्रद्धालुओं पर
मजनुओं की गंदी नज़र भी रहती हैं।
इन समस्या से प्रशासन
और स्थानीय स्तर से निज़ात पाया जा सकता है!
सनातन हिन्दू धर्म के
आस्थावानों के द्वारा
इस उपलक्ष्य में
गंगा स्नान की जाती हैं,
तो माघी पूर्णिमा तिथि को
‘प्रभु जी, तू चंदन, हम पानी’ के गीतकार
महान संत रैदास की जयंती भी है,
जिन्होंने ही कहा था–
“मन चंगा, तो कठौती में गंगा”
यानी मानो तो मैं तुम्हारी गंगा माँ हूँ,
ना मानो तो बहता पानी !
बावजूद, जिस देश में गंगा बहती है,
वो महान देश को इस हेतुक सदा नमन !
पूरब तरफ गंगा के साथ महानंदा का संग है,
तो पश्चिम तरफ कौशिकी (कोशी) के साथ !
संत रैदास व संत रविदास को सादर प्रणाम !
माँ देवी गंगा को सादर नमन !