सच में से विश्वास निकलता
सच में से विश्वास निकलता, नर-नारी से अलग न होता।
नर-नारी मिल पूरण होते, सच्चा प्रेम जब उरों में सोता।
प्रेम राह आसान नहीं है।
सच ने सच की बाँह गही है।
छल, कपट, प्रपंच नहीं कोई,
यह जीवन की राह सही है।
इक-दूजे को करें समर्पण, कोई भी मजबूर न होता।
सच में से विश्वास निकलता, नर-नारी से अलग न होता।।
इक-दूजे बिन नहीं रह सकते।
दूजे का दुख नहीं सह सकते।
सच में प्रेम जहाँ है होता,
कानूनों में नहीं बह सकते।
कितना भी मजबूर करो तुम, मजबूरी का संबन्ध न होता।
सच में से विश्वास निकलता, नर-नारी से अलग न होता।।
नर-नारी की राह एक है।
प्रेम जहाँ है, एक टेक है।
प्रेम में कोई माँग न होती,
धोखा है, वहाँ प्रेम फेक है।
प्रेम तो केवल करे समर्पण, प्रेम में कभी मन भेद न होता।
सच में से विश्वास निकलता, नर-नारी से अलग न होता।।