अहं ,गुस्सा ,क्रोध ,नफरत मीठा जहर
क्रोध,गुस्सा,नफरत ये सब धीमा जहर है, इन्हें पीते हम खुद हैं, और सोचते हैं मरेगा कोई दूसरा। कोई भी धर्म शाकाहार का विरोध नहीं करता,जो शाकाहारी नहीं है वह भीअपना सकते हैं।यह स्वास्थ्य,प्रकृत्ति,समाज के लिए उत्तम है,अहिंसा व प्राणियों से प्रेम सिखाता है। क्रोध से स्वयं का सबसे ज्यादा नुकसान होता है, जिसका अंदाजा शांत होने पर पता चलता है. जब कोई व्यक्ति आपके विचार या मन के अनुसार कार्य नहीं करता है तो उसके हालत को समझे बिना ही हम उस को नफरत करने लगते है. क्रोध के कारण हृदय में अहंकार की भावना आती है और अहंकार ही ईश्वर का भोजन है. गुस्सा इंसान के जीवन में सिर्फ विपत्ति लाता है. हमेशा सोचे जब-जब आपको गुस्सा आया तब आपको लाभ मिला या हानि हुआ. आप अगली बार गुस्सा करने से बचेंगे. बुद्धिमान लोग बेवजह गुस्सा नहीं करते है और गुस्सा होते भी है तो उसे नियन्त्रण में रखते है. क्रोध जब इंसान के ऊपर हावी होता है, तब अच्छाई और बुराई के बारें में सोचे बिना ही कार्य करता है जिसका परिणाम दुखद होता है. क्रोध और अहंकार के कारण ही रावण का विनाश हुआ था. जब-जब इंसान को गुस्सा आता है, तब-तब उसकी कमजोरी का एहसास दिलाता है. अक्सर कामयाबी की बात वही करता है, जो इंसान क्रोध का लगाम अपने हाथ में रखता है. जो हमेशा गुस्से में रहे उसे छोड़ना जरूरी है, ऐसे मूर्ख इंसान का घमंड तोड़ना जरूरी है. गुस्से और आंधी से होने वाला नुकसान, इनके थम जाने के बाद दिखाई पड़ता है. बेवजह इंसान गुस्सा तब होता है, जब समस्या का उसके पास हल नहीं होता है. क्षमा, दया, करुणा, प्रेम, धैर्य, नम्रता, सादगी ये कुछ ऐसे गुण है जो प्रत्येक मानव में आंशिक रूप से हो यह अपेक्षा की जाती हैं मगर जहाँ अहंकार का घर होता है वहां इन समस्त मानवीय मूल्यों के लिए कोई जगह नहीं बसती हैं.
— रेखा मोहन