अदब की दुनिया के जगमगाते सितारों से मिलना जैसे ज़ियारत हो गई
अदब की दुनिया के जगमगाते सितारों से मिलना जैसे ज़ियारत हो गई
पहले दिन तय हुआ था कि सुबह ठीक साढ़े सात बजे घर से निकल पड़ेंगे | ताकि अंधेरा होने से पहले शिमला पहुँच जायें | अत: दूसरे दिन यानि २२ मई को मैं सुबह रोज कि तरह जल्दी उठ गया | जिस दिन कहीं जाना हो उस रात मुझे नींद कम ही आती है | बार-बार मेरा अवचेतन मन मुझे हिदायतें देता रहता है, सोये मत रहना | सुबह लेट न हो जाना आदि-आदि | आज भी नींद पूरी नहीं हुई थी | फिर भी.. तैयार होकर, अपना सामान बैग में डालकर ठीक साढ़े सात बजे मैं कार पार्किंग पद्धर ग्राउंड बनीखेत पहुँच गया था | पंजपुला में सुभाष साहिल और जगजीत आजाद मेरा इंतजार कर रहे थे | ठीक पौने आठ बजे मैं पंजपुला पहुँच गया और उन्हें अपने साथ लेकर चल पड़े शिमला कि ओर | हमारे चम्बा से शिमला बहुत दूर है | हमें अपनी राजधानी पहुँचने के लिए लगभग चौदह घंटे (बस द्वारा) लग जाते हैं | हमारा जिला राजधानी से दूर होने के कारण आज भी कई असुविधाओं से लैस है वजह शायद यह दूरी भी हो | राजधानी के सुख सुविधाएँ चम्बा तक पहुँचते-पहुँचते शायद थक से जाते हैं | इसलिए ही वे शायद यहां आना ही नहीं चाहते | खैर, आगे चलते हैं | हम दुनेरा के रास्ते निकले | बनीखेत से दुनेरा लगभग ३५ कि.मी है | और दुनेरा से नुरपुर भी शायद इतनी ही दूरी पर है | दुनेरा से सदवां तक सड़क इतनी तंग है कि दूसरी गाड़ी को पास देना कठिन हो जाता है | दुनेरा और सदवां के बीच का क्षेत्र पंजाब के जिला पठानकोट में पड़ता है | दुनेरा होते हुए हम लगभग साढ़े नौ बजे नुरपुर पहुँच गये थे | हमने वहां सड़क की बगल में ठेले वाले से नींबू पानी पिया और तरबूज खाया तो थोड़ी सी गर्मी (उमस) से राहत मिली | सूरज भगवान जैसे-जैसे दिन चढ़ रहा था और गर्म हुए जा रहे थे | यूं भी हम पहाड़वालों को मैदानों में रहने की आदत नहीं होती और गर्मी औरों की बनिस्पत ज्यादा लगती है |
हमने कोटला से आगे ३२ मील नामक स्थान से रानीताल के रास्ते पर पर गाड़ी डाल दी | बत्तीस मील से रानीताल लगभग ४५-५० कि. मीटर है | वहां डा. विजय पुरी भी मिल गये | हमने उन्हें वहां मिलने को कहा था वो भी हमारे साथ शिमला ही जा रहे थे | ज्वाला जी होते हुए जब हम नादौन पुल के पास पहुँचे तो दाहिनी तरफ एक खूबसूरत होटल है गज़ल | हमने वहां चाय पीनी चाही | गाड़ी अन्दर पार्क कर हम अन्दर होटल में जा बैठे | वेटर ने आर्डर मांगा तो हमने उसे पूछ ही लिया कहां से हो ? तो उसने बताया- चंबा के रजेरा गाँव से हूँ | मैंने पूछा आपके साहब कहां हैं ? उसने बताया- यहीं हैं | वे मेरे फेसबुक मित्र भी हैं और बनीखेत के पास गांव डूहका के हैं | पेशे से प्रशासनिक अधिकारी (एच ए एस ) हैं | हमने मिलने की इच्छा जाहिर की तो वह लड़का नीचे कमरे में गया और हमारा संदेश दिया तो वे तुरंत हमसे मिलने ऊपर आ गये | गणेश दत्त ठाकुर एक प्रशासनिक अधिकारी नहीं अपितु हमें ऐसा लगा जैसे हम उनके घर अपने गांव में उनसे मिल रहें हों | बेहद आत्मीयता-परिपूर्ण स्नेह | लगभग पौने घंटे तक उनसे आत्मीय परिचर्चा होती रही | चाय पी | फिर हम सुखद अनुभूतियों की पोटली बांध वहां से रुखसत होने लगे तो उन्होंने वापिसी में रात वहां रुकने का भरपूर आग्रह करते हुए हमें विदा किया |
कहते हैं दिल को दिल की राह होती है, बिलासपुर में सुशील पुण्डीर जी से मिलने की तम्मना थी; जो हाल ही में संयुक्त निदेशक उच्च शिक्षा पदोन्नत हुए थे | पुराने साहित्यिक मित्र हैं | इसलिए इच्छा थी कि उन्हें रूबरू बधाइयाँ देते चलें | परन्तु समय की कमी थी इसलिए उनके पास जाने कि योजना टाल दी थी | परन्तु जब हम कन्दरौर के पुल को पार करके कन्दरौर बाजार में पहुँचे तो वे आगे सड़क में ऐसे खड़े थे जैसे हमारा ही इन्तजार कर रहे हों | उन्होंने बताया-‘मैं भी कहीं जा रहा था, यह गाड़ी आती देखी तो मैं रुक गया’ | पुण्डीर साहब अपनी अर्धागिंनी के साथ बड़ी गर्मजोशी से हमसे मिले | वहीं एक परिवार सुभाष साहिल के दोस्त का रहता है | परिवार के मुखिया स्वयं नायब तहसीलदार हैं जबकि बेटा…हाई कोर्ट में प्रेक्टिस करता है | बहुत ही आत्मीय परिवार है | बहू तो साक्षात देवी है | उनके घर में हम एक बार पहले भी ठहर चुके थे | सुभाष साहिल ने फोन किया तो वे भी वहां आ गये | फिर पास ही उनके आवास पर जाना हुआ | वहां नींबू चाय पी | फिर इन आत्मीय जनों से विदा लेते हुए पुण्डीर साहब आगे चले गये और हम शिमला की तरफ | अभी हमने शुभम के कॉलेज में भी जाना था | कन्दरौर से लगभग पांच-छ: कि.मी. शिवा इंजीनियरिंग कॉलेज है | यहां शुभम अंतिम वर्ष का विद्यार्थी है | लगभग 15 मिनट के सफर के बाद हम उसके कॉलेज पहुँच गये | चांदपुर से ऊपर कॉलेज तक की सड़क बड़ी ही संकरी है और ऊपर से बिल्कुल सीधी चढ़ाई | ऊपर पहाड़ी पर पहुँच कर फिर उतराई शुरू हो जाती है | उतराई पर सबसे पहले बाईं तरफ एक बिल्डिंग है, शायद यह लड़कियों का हॉस्टल है | बाहर एक बोर्ड टंगा है अंग्रेजी में | जिसका आशय है कि आप कैमरे की नजर में हैं | कॉलेज गेट पर सिक्यूरिटी वालों ने बिना पूछे ही गेट खोल दिया | शायद उन्होंने दोनों लड़कों शुभम व प्रदीप को आते देख लिया था |
हॉस्टल की जिन्दगी का भी अपना अलग ही आनन्द होता है | दूर-दूर से आये अजनबी उम्रों के रिश्तों में बंध जाते हैं | एक के घर से कोई मिलने आये तो सबको लगता है अपने ही घर से कोई आया है | हम सीढियां उतरते हुए शुभम के कमरे में पहुँच गये | जो भी छात्र सीढ़ियों पर मिला उसने ही झुक कर पैर छुए | हृदय की अतल गहराइयों से संवेदना हिलोरे लेने लगी | लगा, हॉस्टल में बेटे का आचरण अच्छा है | कंटीन के मालिक से मिलवाया फिर बरामदे में वार्डन से मिलवाया और अन्दर कमरे में पहुँचते ही मैं बिस्तर पर लेट गया | सचमुच मैं उस बिस्तर की छुअन महसूस करना चाहता था जिस पर मेरा बेटा घर से दूर रहकर रोज इसी बिस्तर पर सोता है | कमरे का न. 409 था | अन्दर भगत सिंह की पेंटिंग बनी थी दीवार पर | देशभक्ति का यह जज़्बा आज के नौजवानों में अभी जिन्दा है, मन को सोच कर संतोष मिला | शायद कुछ ऊल-जलूल भी लिखा था परन्तु वह सब स्टीकर लगाकर ढक दिया गया था | बेटा श्री-श्री रवि शंकर का आर्ट ऑफ लिविंग का कोर्स किये है अत: रोज योग करता है | शायद उस महान आत्मा के आशीर्वाद का भी असर रहा होगा अच्छे संस्कारों के लिए | कमरे में एक तरफ दीवार पर एक सूचना भी लिखी थी ‘-कृपया तेल, साबुन ,टूथपेस्ट ना मांगें, अपना खुद का इस्तेमाल करें हमने सबका ठेका नहीं ले रखा है : 409 द्वारा फ्लोर हित में जारी ‘ | पढ़कर मेरे होठों पर मुस्कुराहट तिर आई | होस्टल में दोस्त तेल साबुन तो क्या एक दुसरे के कपड़े तक उठा कर पहन लेते हैं
शुभम इतने में ठंडा ले आया और सभी ने ठंडा पिया और फिर हम वहां से रुखसत हुए | अब तक समय लगभग 4:30 बज गये थे | घर फोन किया तो बनीखेत में बारिश हो रही थी जबकि बिलासपुर में सूरज अभी भी आग उगल रहा था | बिलासपुर शहर से होते हुए हम शिमला की तरफ निकल पड़े थे | शिमला की चढ़ाई पर दाड़लाघाट तक ट्रेफिक बहुत ज्यादा होती है | कारण दाड़लाघाट में सीमेंट फैक्टरी है | बहुत से ट्रक यहां सीमेंट ढोने में लगे हैं | रात के लगभग 8:30 बजे हम घणाहट्टी पहुँचे थे | डा. कर्म सिंह जी जो हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी शिमला में अनुसन्धान अधिकारी हैं ,इस कवि सम्मेलन के आयोजक थे | उनसे संपर्क किया तो उन्होंने लाईब्रेरियन देव राज जी से बात करवाई | उन्होंने हमें आगाह करते हुए कहा कि राईटर होम में मदन चौकीदार कह रहा है कि नहा धोकर व खाना खाकर ही आयें शिमला में पानी नहीं है | हमने फिर मदन जी से बात की और उसके पास ही रोटी खाने का आग्रह किया तो वह अब हमारे आग्रह को ठुकरा न सका और जैसे-तैसे उसने पानी का प्रबंध भी किया और रोटी का भी | जब हमने शिमला शहर में प्रवेश किया तो लगभग नौ बज चुके थे | जगमगाती रौशनी ऐसे लग रही थी जैसे पहाड़ों की रानी ने सितारों से सजा खूबसूरत लिबास पहना हो | पुराने बीएस स्टैंड से होते हुए जब हम टिम्बर हॉउस पहुंचे और टिम्बर हाउस से अकादमी दफ्तर की तरफ गाड़ी चढ़ाई तो मदन जी स्वयं नीचे आ गया थे | उसने गाड़ी को सुरक्षित स्थान पर स्वयं पार्क करवाया और हमें जल्दी-जल्दी राइटर होम पहुँचने को कहा, तेज हवा के साथ जोर की बारिश शुरू हो गई | हम तो सूखे ही पहुँच गये परन्तु जगजीत और मदन थोड़ा गाड़ी पार्क करते रह गये और भीग गये थे | मौसम ने झमाझम बरस कर जैसे हमारा स्वागत किया हो | सारा दिन जो हम गर्मी से झुलसे थे अब हमारे तन मन में ठण्डक की फुहार ने हरियाली बीज दी थी | दिनभर की झुलसाती थकान रिमझिमी बूंदों के आगोश में कब उतर गई पता ही नहीं चला | सुबह जब जगे तो सात बज गये थे | आज ग्यारह बजे गेयटी में कहानी पाठ, पत्र वाचन व कवि सम्मेलन था |
[ कवि आत्मा रंजन ,जगजीत आजाद , कुल राजीव पन्त , बद्री सिंह भाटिया , एस आर हरनोट ,व अशोक दर्द रिज पर ]
हम नाश्ता करके लगभग साढ़े नौ बजे राइटर होम से माल की सड़क पर टहलते हुए गेयटी के लिए निकल पड़े | सुबह माल पर खूब चहल-पहल थी | राजधानी की सड़के बन संवर कर अपने-अपने सफर में व्यस्त हो गई थी | देवदारों की पत्तियों को छूकर आती हवा आगन्तुकों का जैसे स्वागत कर रही थी |गेयटी थियेटर एक एतिहासिक भवन है | बरसों का इतिहास इसकी दीवारों को छूकर महसूस किया जा सकता है, बशर्ते कि किसी में महसूसने की अन्तर्शक्ति विद्यमान हो | गेयटी में एक पेन्टर की पेंटिंग्स की प्रदर्शनी लगी हुई थी | एक से बढ़कर एक पेंटिंग थी | वह कलाकार पेंटिंग के साथ-साथ अपनी राजनितिक समझ व रुझान को भी प्रदर्शित कर रहा था | कुछ देर, हमने उसके आगे रूककर उसकी पेंटिंग्स व राजनितिक समझ की तस्वीर खींची | फिर ख्याल आया एक कलाकार तो सबका होता है | वह सामजिक धरोहर की तरह होता है | उसे राजनीतिक खेमेबाजी से बचना चाहिए | यह मेरा व्यक्तिगत द्रष्टिकोण रहा है |
वहां से जैसे ही हम बाहर निकले मशहूर कहानीकार एस. आर. हरनोट आते दिखे | उनकी एक कहानी ‘बिल्लियां बतियाती हैं’ बरसों पहले पढ़ी थी आज भी जहन में है | आज कितना सौभाग्यशाली दिन था कि उस कहानी के रचनाकार से मिलना हो रहा था | अन्तर्मन में दबी चाहत की पूर्ति बरसों बाद हो रही थी | बड़ा ही सौभ्य व्यक्तित्व मिलने के उपरान्त ऐसे लगा बरसों से हमारा परिचय है | आत्मीय रिश्ते हैं | [ गियेटी थिएटर में हिमाचल के साहित्यकारों के साथ ]
इतने में कवि श्रीनिवास श्रीकांत भी आ गये | कंधे पर बैग लटका हुआ | गालों पर मोटी सफेद दाढ़ी | लम्बा बदन | वृद्धावस्था के कारण शरीर थोड़ा दुर्बल | साथ में धर्मपत्नी | उन्हें सीढ़ियाँ उतरने में कठिनाई हो रही थी शायद थोड़ी नज़र भी कम थी | मैंने उन्हें सहारा दिया और धीरे-धीरे सीढियां उतरवाने लगा | हाल ही में उन्हें कविता के लिए हिमाचल में शिखर सम्मान मिला है | मैं उन्हें छूकर जैसे धन्य हो गया था ऐसी मेरे अन्दर से भावना फूट-फूटकर बाहर आ रही थी | उन्हें छूने भर के रोमांच से मेरा तन-मन पुलकित हो गया था | सरस्वती के इस साधक को छूकर मैंने मानों मां सरस्वती को लिया हो | अन्दर जहाँ कार्यक्रम हो रहा था, वहां हाल में उन्हें कुर्सी तक छोड़ मैं गद्गद हो गया था | धीरे–धीरे प्रदेश भर से आये विद्वान एकत्रित हो रहे थे | कार्यक्रम दो सत्रों में विभाजित था | प्रथम सत्र कहानी पाठ व समीक्षा के लिए जबकि दूसरे सत्र में कवि गोष्ठी थी | ‘भागीदेवी का चायघर’ कहानी हरनोट जी की जुबानी सुनी जबकि दूसरी कहानी ‘फेगड़े के फूल’ मुरारी शर्मा ने पढ़ी | दोनों कहानियों पर समीक्षा हुई | दूसरे सत्र में लगभग तीस कवियों ने रचना पाठ किया | कार्यक्रम के उपरान्त पुराने साहित्यिक मित्र त्रिलोक सूर्यवंशी जो आजकल शिमला में जिला भाषा अधिकारी हैं उनके साथ चाय पी | उसके उपरांत जब तक रिज पर अंधेरा नहीं उतरा हमने आशियाना रेस्टोरेंट में कुल राजीव पंत , एस . आर. हरनोट , बद्री सिंह भाटिया , व कवि श्री आत्मा रंजन जी का सान्निध्य लेते हुए खूब साहित्यिक चर्चा की | [ ये सभी लोग हिमाचल की अदबी दुनिया के जगमगाते सितारे हैं ] फिर माल पर टहलते हुए वापिस राइटर होम आ गये | मदन जी ने स्वादिष्ट खाना हमारे आने तक तैयार कर दिया था | हमने खाना खाया और आज के कार्यक्रम की समीक्षा करते हुए निद्रालोक में प्रविष्ट हो गये | सुबह जागे तो देवदारों की फुनगियों से गुनगुनी धूप कमरे की खिड़कियों पर दस्तक देने लगी थी |
आज वापिसी का कार्यक्रम था | हमने नाश्ता किया और चम्बा की ओर प्रस्थान कर दिया |बिलासपुर के पास नम्होल में विजय पुरी ने मनोज शिव को पहले ही फोन कर दिया था | वह वहां बैंक में लगे हैं | हमें उम्मीद थी कि उसके पास रूककर चाय जरुर पी जाएगी | परन्तु कारण कुछ भी रहा हो, हमारी चाय पीने की इच्छा अधूरी रह गई | बिलासपुर पहुँचे तो शब्द मंच के संपादक जय कुमार शर्मा जी से मिलने उनके आवास पर पहुँच गये | वृद्धावस्था के बावजूद वे सड़क तक हमें लेने आ गये थे | लगभग एक घंटे तक उनके आवास पर रुके | [ शब्द मंच के सम्पादक आदरणीय जय कुमार जी के साथ उनके निवास पर ]
वहां हमने चाय पी | उन्होंने मुझे मेरी एक रचना पर शाबाशी दी | मेरे लिए यह किसी प्रशस्ति पत्र से कम न था | फिर उन्होंने मुझे हाइकु लिखने के संदर्भ में सचेत भी किया, कहा कि आप कविताएँ लिखिए इनके चक्कर में न पड़ें | मुझे उनकी कही एक-एक बात अर्थपूर्ण एवं उपयोगी लगी | और भी कई विषयों पर संक्षिप्त बातचीत हुई |हाल ही में स्वर्गवास हुए साहित्यकार विजय सहगल का भी उन्होंने जिक्र किया | वहां से विदा हुए तो वे फिर हमें छोड़ने मेन सड़क तक आये | फिर हम शिवा कालेज होते हुए कांगड़ा के रानीताल पहुँचे तो थोड़ी-थोड़ी बारिश शुरू हो गई थी | विजय जी यहीं उतर गये |
अब मैं सुभाष साहिल व जगजीत तीन लोग ही बचे थे कार में | रानीताल के पुल को पार किया तो बारिश की बौछारें और तेज हो गई थी | अब सड़क भी थोड़ी-थोड़ी दिख रही थी | गाड़ी चलानी मुश्किल हो रही थी परन्तु जगजीत कहां रुकने वाला था | बड़ा जुझारू लड़का है | बारिश धूप झुलसाती गर्मी व शिमला की ठंडी हवाओं के झोंके व एक अविस्मरणीय यात्रा की अनुभूतियों को हमने मंजिल की ओर बढ़ते हुए अपने-अपने जहन में संजो लिया था | जैसे वक्त के बहते पानी पर स्मृतियों के दीये जला कर बहा दिये थे और समय का बहाव उन्हें धीरे धीरे आगे खिसकाता चला गया | धीरे धीरे उनका प्रकाश मद्धम और मद्धम होता गया और हमारी नजरों से वे दीये बहते हुए ओझल बेशक हो गये परन्तु उनका आलोक समय की लहरों पर जो फैला था ,हमारे जहन में भी उतरता चला गया था | उसे सिर्फ महसूसा जा सकता था | परिभाषित नहीं किया जा सकता था | इन लहरों के तटों पर ऐसे यशस्वी लोगों से मिलना जैसे प्रकाश पुंजों से मिलना था | हमारा जीवन धन्य हो गया था , इस साहित्यिक यात्रा के उपरांत ऐसे लग रहा था जैसे हमने ज़ियारत [तीर्थ स्थान की यात्रा ] कर ली थी ||
अशोक दर्द
प्रवास कुटीर ,गाँव व डाकघर बनीखेत
तह.डलहौजी जिला चंबा,हिमाचल प्रदेश १७६३०३
मोब. 9418248262