अवसाद
लेख- अवसाद
अवसाद एक प्रकार का मानसिक विकार है। जो किसी भी व्यक्ति को, कभी भी, जीवन में किसी भी उम्र में हो सकता है। इसके होने पर रोज़मर्रा की ज़िंदगी में बहुत नुकसान पहुंचता है। इससे गृसित व्यक्ति का हमेशा मन उदास रहता है और उसका किसी भी गतिविधि में मन नहीं लगता है। ऐसा भी देखा गया है कि व्यक्ति को भूलने जैसी बीमारी भी हो जाती है।
यह एक प्रकार की जैविक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कारणों के मेल से होने वाली परेशानियों की वजह से भी हो सकता है। शोध से यह बात और भी सामने आ रही है कि इन कारणों से दिमाग के काम करने के तरीके में बदलाव आ सकता है। दिमाग में तंत्रिकाओं के कुछ सर्किट की गतिविधियों में परिवर्तन भी इस बदलाव का हिस्सा हो सकते हैं।
अवसाद की अवस्था में व्यक्ति स्वयं को लाचार और निराश महसूस करता है। उस व्यक्ति-विशेष के लिए सुख, शांति, सफलता, खुशी यहाँ तक किसी से संबंध तक भी बेमानी से हो जाते हैं। संबंधों में बेईमानी का परिचायक उसके द्वारा उग्र स्वभाव, गाली गलौज व अत्यधिक शंका करना इसमें शामिल होता है। इस दौरान उसे सर्वत्र निराशा, तनाव, अशांति, अरुचि प्रतीत होती है। अवसाद के भौतिक कारण भी देखे गए हैं जैसे- कुपोषण, आनुवांशिकता, हार्मोन, तनाव, बीमारी, नशा, अप्रिय स्थितियों में लंबे समय तक रहना, पीठ में तकलीफ आदि प्रमुख हैं। इनके अतिरिक्त अवसाद के कारण ९० प्रतिशत रोगियों में नींद की समस्या भी देखी गई है। मनोविश्लेषकों के अनुसार अवसाद के कई कारण हो सकते हैं। यह मूलत: किसी व्यक्ति की सोच की बुनावट या उसके मूल व्यक्तित्व पर निर्भर करता है। अवसाद लाइलाज रोग नहीं है। इसकी अधिकता के कारण रोगी आत्महत्या तक कर सकते हैं। इसलिए परिजनों को हमेशा सजग रहने की आवश्यकता है। अगर उनके परिवार का कोई सदस्य गुमसुम रहता है, अपना ज्यादातर समय अकेले में बिताता है, निराशावादी बातें करता है तो उसे तुरंत किसी अच्छे मनोचिकित्सक के पास ले जाएं। उसे अकेले में न रहने दें। हँसाने की कोशिश करें और उस पर हमेशा नज़र बनाए रखें।
प्राकृतिक तौर पर महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा अवसाद की शिकार अधिक बनती हैं, अवांछित दबावों से वह इसकी शिकार हो सकती हैं। इस कारण प्रायः माना जाता है कि महिलाओं को अवसाद जल्दी आ घेरता है। इसके विपरीत पुरुष अक्सर अपनी अवसाद की अवस्था को स्वीकार करने से संकोच करते हैं। मोटे अनुमान के अनुसार दस पुरुषों में एक जबकि दस महिलाओं में हर पाँच को अवसाद की आशंका रहती है।
जैसा कि आप सभी जानते हैं कि कोरोनावायरस की वजह से हर व्यक्ति आज़ सहमा हुआ है। तब ऐसे नाज़ुक समय में इससे गृसित लोगों की आशंका ज्यादा जताई जा रही है। अब हमारा कर्त्तव्य है कि हमें अपने मन की आवाज़ सुननी है या आंखों देखी-कानों सुनी?
इससे बचने के लिए हमें हमेशा खुश रहने की आदत डालनी पड़ेगी और अपने को पहले से ज्यादा दुरूस्त रखने की भी। मैडिटेशन का सहारा लिया जा सकता है, योग द्वारा, ध्यान द्वारा, अच्छा पौष्टिक आहार द्वारा और प्राणायाम द्वारा।
अंत में बस एक बात कहना चाहूंगी कि परिस्थिति हमेशा एक जैसी नहीं रहती, समय के साथ बदलती जरूर है। मेरा दृढ़ विश्वास है कि हम सब भी इससे हंसते-खेलते बाहर निकल जाएंगे। इसी आशा के साथ…
मौलिक लेख
नूतन गर्ग (दिल्ली)