ग़ज़ल
नूर घर आ बसा नहीं होता।
द्वार पर गर दिया नहीं होता।
इश्क़ दिल में दबा न होता जो,
प्यार हरगिज़ मिला नहीं होता।
प्यार की फूटती नहीं कोपल,
दिलसेजो दिल मिला नहीं होता।
राख शोला दबा न रखती जो,
आग का सिलसिला नहीं होता।
बात कहता नहीं अगर सच्ची,
आईना आईना नहीं होता।
अक्ल पहले अगर चला लेते,
तब कठिन मरहला नहीं होता।
फूँक पीता कभी नहीं मट्ठा,
दूध से गर जला नहीं होता।
— हमीद कानपुरी