संस्कार जो मुझे मिले हैं
कहने को कुछ भी कह सकता फिर भी चुप रह जाता हूं.
संस्कार जो मुझे मिले हैं उनको भूल न पाता हूं.
संस्कार जो मुझमें दिखते
वे मेरे परिचायक हैं.
मेरे कुल की गौरव गाथा
के वे सच्चे गायक हैं.
इसीलिए मैं अंतर्मन से उनको हरदम गाता हूं.
संस्कार जो मुझे मिले हैं उनको भूल न पाता हूं.
पर इसका यह अर्थ न समझें-
मैं सब कुछ सह लेता हूं.
जो भी मुझको कहना होता
कविता में कह देता हूं.
लेकिन भाषा की मर्यादा को हरदम अपनाता हूं.
संस्कार जो मुझे मिले हैं उनको भूल न पाता हूं.
यह तो सच है संस्कार से
हमें न रखनी दूरी है.
मगर सही को सही, ग़लत को
कहना ग़लत, ज़रूरी है.
इसीलिए मैं संस्कार के संग यह धर्म निभाता हूं.
संस्कार जो मुझे मिले हैं उनको भूल न पाता हूं.
डॉ. कमलेश द्विवेदी
मो.9140282859