कुण्डली/छंद

कुंडलिनी छंद – जीवन-लक्ष्य

(1)
जीना इक अरमान है,जीना इक पहचान
जीने का सम्मान हो,जीने का यशगान
जीने का यशगान,प्यार का प्याला पीना
मानवता हो संग,तभी फलदायी जीना।
(2)
मानवता संग ले,जीना है इनसान
इनसानी जज़्बात से,जीने में है शान
जीने में है शान,दूर कर दे दानवता
तभी मिलेगा मान,साथ जब हो दानवता।
(3)
दमकेगा आलोक तब,जब पावनता-भाव
साथ मनुज के नित रहे,करुणा का शुचिभाव
करुणा का शुचिभाव,नित्य जीवन चहकेगा
सूरज बनकर आप,मधुर जीवन दमकेगा।
(4)
आशा तब हो बलवती,जब हो पर का सार
यह जीवन रोशन बने,दमकेगा संसार
दमकेगा संसार,दूर हो सकल निराशा
पल-पल सब खुशहाल,पलेगी नियमित आशा।
(5)
गा ले नेहिल गीत नित,मनुज न बन नादान
बढ़ता जा सत् भाव ले,करता जा उत्थान
करता जा उत्थान,प्रेम का प्याला पा ले
जीवन पाए आन,राम की महिमा गा ले।
(6)
अपना ले इंसानियत,यही सदा उपदेश
हट जाएंगे दुख सभी,परे पीर अरु क्लेश
परे पीर अरु क्लेश,राम का मन सपना ले
इस जीवन में सत्य,प्यार को तू अपना ले।
(7)
दूरी मत रख प्यार से,यही दे रहा सीख
मानवता की माँग ले,परम पिता से भीख
परम पिता से भीख,नहीं कोई मजबूरी
रख नित मानव-भाव,नहीं रख बंदे दूरी ।
— प्रो. (डॉ) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]