क्षणिकाएं
#जल
मैं वहां परिंदा नहीं…,
जल सूखा और
तालाब छोड़ दूं !
मैं वह मीन हूं …,
जल सूखा और
तड़पकर मर जाऊं !!
#पानी
पानी रे पानी तेरा
रूप कई प्रकार !
तुम ही जीवन तू ही
जीवन का आधार !!
#नीर
आंखों से जो बह गए
अश्क़ बन गए …,
गंगा से बह चले नीर !
अपनी दिल की दर्द समझ ,
औरों का महसूस कर पीर !!
— मनोज शाह ‘मानस’