ग़ज़ल
सुकूं से भरें कुछ जहां और भी है।
जो रखते हैं अम्नो अमां और भी हैं।
महज एक बाजी ही हारा है ये दिल,
भरे तीर तरकश कमां और भी हैं।
अगरएकमंज़िल फतहकर चुके हो,
तुम्हारे लिए आसमां और भी हैं।
फतहयाब होना अगर चाहते हो,
यहाँ की तरह के जहां और भी हैं।
अकेले नहीं तुम यहाँ बेजुबां हो,
तुम्हारी तरह बे जुबां और भी हैं।
बपौती नहीं है किसी एक दल की,
वतन के निगहबां यहाँ और भी हैं।
— हमीद कानपुरी