क्षणिका जिंदगी की शाम *विभा कुमारी 'नीरजा' 23/02/2021 बंदिशों के पिंजरो में कैद है- मेरी जज्बातों की आजादी! पंख फड़फड़ाते है….. उड़ नहीं सकते ये परिंद….! रफ्ता रफ्ता कम होती जाती है उम्र की लंबाई…..! खुदा जाने क्या हो….? जब इस जिंदगी की शाम आई! — विभा कुमारी “नीरजा”