राजघाट
उनकी आत्मकथा में
जिन बिंदुओं को
उन्होंने पिरोया है !
कई प्रयोजन में वे
‘महात्मा’ शब्द से
दूर जाते दिखते हैं !
हाँ, अनशन,
अहिंसा,
सत्यवद,
विदेशी कपड़े का त्याग
और खादी इत्यादि मामले में
उनका ‘महात्मा’ रूप
उभर कर आता है,
किन्तु वे ‘कस्तूर’ पर भी
हाथ उठाये थे,
इससे स्पष्ट है
कि वे मानव ही थे,
महामानव नहीं !
वे आम-आदमी थे,
किन्तु उनकी
समाधि-स्थल का नाम
‘राज घाट’ होना
आम-आदमी से इतर
राजाओं जैसे हैं !