समरसता के दोहे
समरसता यदि संग है,तो पलता मधुमास।
अपनाकर संवेदना,मानव बनता ख़ास।।
समरसता-आचार तो,है करुणा का रूप।।
जिससे खिलती चाँदनी,बिखरे उजली धूप।।
समरसता सुविचार से,मानव बने उदार।
द्वेष,कपट सब दूर हों,बिखरे नित उपकार।।
अंतर्मन में नम्रता,अधरों पर मृदु बोल।
समरसता करती सदा,जीवन को अनमोल।।
रीति,नीति हमसे कहें,बन तू सद् इनसान।
समरसता देवत्व है ,पाए जीवन मान।।
समरसता से नित अधर,पर खिलती मुस्कान।
बिन समरसता ज़िन्दगी,नहिं पाती है आन।।
समरसता उत्कृष्ट नित,जो लाती उजियार।
सच में समरसता बिना,फैले नित अँधियार।।
समरसता-उद्घोष है,रखें नेह का भाव।
संवेदित हो हम रखें,समरसता का ताव।।
समरसता पलती जहाँ,वहाँ रहें भगवान।
समरसता की नीति से ,होता नित यशगान।।
समरसता तो नित्य ही,है चोखा उपहार।
मानव-जीवन को मिले, क़दम-क़दम पर सार।।
— प्रो.(डॉ)शरद नारायण खरे