कवितापद्य साहित्य

सोचो, समझो, सँभलो, नारी

साथ भले ही ना रह पाये।
किन्तु साथ के गाने गाये।
माया तजकर सन्त कहें जो,
महफिल में, नारी ही आयें।

नारी को नर्क का द्वार बताया।
उनको भी, नारी ने,  जाया।
संन्यासियों के जलसों में भी,
जमघट महिलाओं का आया।

नर-नारी मिल खीचें गाड़ी।
बुर्का पहनें, या पहने साड़ी।
मिलकर कर्म से, किस्मत लिखते,
रेखा तिरछी हों, या आड़ी।

नारी बिन कोई, घर नहीं चलता।
कली बिना, कोई पुष्प न खिलता।
सृष्टि, सृजन, समर्पण नारी।
नारी बिन ना, पत्ता हिलता।

नारी है, सदगुणों की, थाती।
प्रातः वन्दन, रात की बाती।
नर निराश, जब हो जाता है,
मधुर वचन से आश जगाती।

नारी, नर को, देव बनाती।
सदगुणों से, उसको नहलाती।
नर के, यदि अवगुण अपना ले,
निष्ठाहीन कुलटा बन जातीं।

सोचो, समझो, सभलो, नारी।
नर की कुराह, चलो न नारी।
झूठ, छल, कपट, कर नर से,
खुद ही, खुद को, ठगो न नारी।

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)