सामाजिक

बच्चों की शैक्षिक जरूरतों की अनदेखी ठीक नहीं

कोविड-19 के दौर में हम सभी बच्चें, युवा और बुजुर्ग किसी न किसी रूप में प्रभावित रहे हैं। जहां इसने एक ओर करोड़ों लोगो के जीवन यापन की श्रंखला को बुरी तरह प्रभावित किया है वहीं इसने शिक्षा ग्रहण कर रहे बच्चों और युवाओं की दैनिक शैक्षणिक प्रक्रियायों को भी तहस-नहस कर दिया है। स्कूली शिक्षा ग्रहण कर रहे बच्चों पर इसका सबसे बुरा प्रभाव पडा है। कोरोना के कारण लम्बे समय तक स्कूल बंद रहे हैं, इस कारण सीखने की दैनंदिन प्रक्रिया बाधित हुई है। बच्चों के संदर्भ में अधिगम अभ्यास में निरंतरता की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह बात अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय द्वारा हाल ही में किये गए शोध से साबित भी चुकी है। यह शोध बताता है कि 10 में से 9 बच्चे भाषा में सीखी गयी कम से कम एक एक दक्षता को भूल चुके हैं वहीं गणित में भी यह संख्या 10 में से 8 बच्चों की है।
उत्तराखंड के पहाडी जिले में स्थित एक सरकारी प्राथमिक स्कूल की प्रधानाध्यापिका होने के नाते मैंने इन आंकड़ों की सच्चाई को करीब से महसूस किया है। कोविड-19 के यदि शुरुआती एक या दो महीनों को छोड़ दूं तो मैंने स्कूल के बच्चों से लगभग साप्ताहिक तौर पर संपर्क बनाये रखा हैं। इसके चलते मुझे यह भी लगता है कि वास्तविक स्थिति तो इससे भी कहीं अधिक भयावह है। मैंने तो करीब से महसूस किया है कि बच्चों में अपनी पढ़ाई के प्रति रुचि भी कम हो गयी है जिसके चलते बच्चें कक्षाओं में पूर्व की भांति ध्यान केन्द्रित नहीं कर पा रहे हैं। बच्चों के साथ उन सभी दक्षताओं पर भी बहुत समय देना पड़ रहा हैं जिसमे मैंने उन्हें पिछले साल के शुरुआती महीनों में दक्ष पाया था। कुछ बच्चें ऐसे भी हैं जो पहले स्कूल में हमेशा नियमित रहते थे किन्तु अब स्कूल में बुलाने पर उपस्थित होने में आनाकानी करते हैं। बच्चों को स्कूल के प्रति लगाव, पढ़ाई के दौरान ध्यान लगना और दक्षता पर काम करना इन तीनो बातों को ध्यान में रखते हुए सीखने-सीखने के तौरतरीके तैयार किये हैं। बच्चों के लिए भाषा और गणित में बुनियादी समझ बनाने के लिए कुछ वर्कशीट तैयार की हैं। उनके परिवेश से जुड़े अनुभवों पर संवाद का सिलसिला आरम्भ किया है। बच्चों को उनके मन की बातें कहने का अवसर भी दिया है। परन्तु, इस दौर में एक बहुत बड़ी संख्या ऐसे बच्चों की भी रही है जिन्होनें शैक्षिक सत्र 2020-21 में कक्षा एक में स्कूल में दाखिला लिया, लेकिन वो स्कूल आज दस महीने बाद भी नहीं देख पाए हैं। अब नया सत्र आने वाला है। इन बच्चों को दो-दो कक्षाओं की तैयारी करना सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण रहेगा। यद्यपि हममें से बहुत से शिक्षक अपने स्कूलों और बच्चों से लगातर संपर्क में हैं। फिर भी इस प्रक्रिया से दैनिक कक्षा संचालन में होने वाली पढ़ाई की भरपाई की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। इसके लिए हमें कुछ विशेष तौरतरीके निकालने होंगे ताकि बच्चे कुछ हद तक इस सत्र 2020-21 में नहीं सीखी गयी या भूल चुकी दक्षताओं की भरपाई कर पायें।
मैं पिछले एक महीने से क्रियात्मक शोध के एक प्रोजेक्ट से भी जुडी हूँ जिसमे हम बच्चों की गणित विषय से जुडी उन दक्षातों पर काम कर रहे हैं जो या तो बच्चे सीखे नहीं हैं या फिर भूल चुके हैं। मैंने दक्षता विशेष में कठिनाई का सामना कर रहे बच्चों के समूह बनाये हैं और उन्हें स्कूल में बुलाकर उनके साथ काम करना शुरू किया हैं ताकि गणित विषय की फाउंडेशनल दक्षताओं जैसे गिनती, तुलना, अन्तर एवं गिनना आदि पर उनकी पकड़ को मजबूत किया जा सके। एक ओर जहां इसके कुछ उत्साहजनक परीणाम आ रहे हैं वहीं बच्चों की स्कूल में उपस्थिति और पढ़ने में रुचि भी फिर से बन रही हैं जो काफी सुकून लाती है कि हम फिर उसी रास्ते पर चल पड़े हैं जो हमें अपनी मंजिल की तरफ ले जाता है। इसके लिए जरूरी है कि स्कूलों को जल्दी से जल्दी खोला जाए और शिक्षणकार्य पूर्व की भांति फिर से नियमित तरीके से शुरू हो सके। एक शिक्षिका के रूप में बच्चों के साथ कोरोना काल में काम करते हुए मैं बहुत खुश हूं कि मैं बच्चों के लिए कुछ सकी हूं।

— इंदु पंवार

इंदु पंवार

राजकीय प्राथमिक विद्यालय गिरगांव, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड) में प्रधानाध्यापिका पद पर कार्यरत