काश! लौट आते वे दिन
काश!
लौट आते वे दिन।
तुम चाहती थीं,
मुझे कितना?
हर पल-क्षण
संग साथ रहने की,
व्याकुलता थी,
तुम्हारे रोम-रोम में।
काश!
लौट आते वे दिन।
नयनों में,
अधरों में,
कपोलों की लालिमा में,
वक्षस्थल की गोलाइयों में,
कोमल कलाइयों में,
तुम्हारे अंग-अंग में,
स्पर्श पाने की कामना,
उत्कट प्रेम की,
वो भावना।
काश!
लौट आते वे दिन।
मेरी छवि को,
पीने की ललक।
चित्र था मेरा,
तुम्हारा हृदय फलक।
तन को तन की,
मन को मन की,
स्पर्श पाने की,
कैसी थी कसक?
काश!
लौट आते वे दिन।
समर्पित किया था,
तन-मन-धन,
सब कुछ।
कैसी चाहत थी?
हर पल,
हर क्षण,
हर रन्ध्र से मुझे,
अपने अन्दर लेने की,
आतुरता,
व्याकुलता,
और परेशानी।
आज स्मरण कर,
मैं हूँ हैरान!
काश!
लौट आते वे दिन।