वसंत लेकर आया शोर
वन वन नाच रहे हैं मोर।
नीरव स्वच्छ आकाश में
होड़ लगी है चारों ओर।
पीली साड़ी पहने सरसों
देखो खड़ी खेत में।
अलसाये से अलक उसके
चमकीली सी धूप में।
नहा रहा बाल गोपाल
सौंधी-सौंधी धूप में।
थाम रहा जल की बूंदें
नन्हें-नन्हें हाथों में।
सूरज पड़ता नैनों में
नयन चौंधिया जाते हैं।
आंखों को थोड़ा मल करके
छिप जाता माँ के सीने में।
माँ की छाती से लगकर
पी रहा था अमृत रस।
कसकर थामे आंचल को
पलके मूंदे निद्रा वश।
माँ के आंचल से छनकर
ले रहा किरणों का ओज।
कोमल हाथों से सहला कर
माँ दे रही ममता की जोत।
प्रेम सुधा के रंग-संग
नवांकुर प्रस्फुटित हो रहा।
माटी के लाड़ दुलार से
संयमित हो खड़ा हो रहा।
प्रथम ज्योति के दर्शन से
हो रहा आनंदित भाव विभोर।
नन्हीं नन्हीं आंखें खोले
देख रहा है चारों ओर।
ठिठुर ठिठुर कर रात जगाती
भोर की आहट होने तक।
दिखे स्वप्न किरणों का सागर
प्रात प्रभात की दस्तक तक।
मन मुकुर मोहे मलयाचल
भीनी भीनी श्वासों में।
धैर्य धारण करे बैठा
सप्तरंगी प्रतीक्षा में।
आते ही फगुवा बाहर
नभ में स्वच्छता छाई।
भोर हुई उड़े पखेरु
नीड़ों में उदासी आई।
सांझ हुई बेला महकी
खगदल लौटे नीड़ों में।
नन्हें नन्हें शावक चहके
लिपट मां के आंचल में।
गिरि गह्वर में छिप कर बैठे
तम को ढूंढ रहा प्रभात।
लेकर सूरज किरण कमान
अंधियारे पे करता आघात।
चीरती निशा के अंधकार को
प्रात की रुपहली किरण।
हृदय तारों को झंकृत करता
संगीतमय सौंदर्य आवरण।
असीम ऊर्जा का अद्भुत स्रोत
सकल बह्मांड में भरता ओज।
आदित्य भानु भास्कर दिवाकर
मित्र मार्तण्ड दिनकर प्रभाकर।
शत शत नमन सूर्यदेव को
तन मन में भरते हैं जोश।
त्रिगुण रूप धारण करके
पालन करते सृष्टि का रोज।
— निशा नंदिनी भारतीय