गीत/नवगीत

रोजगार की चाहत

खाली कंधों पर थोड़ा सा भार चाहिए
बेरोजगार हूँ साहब मुझे रोजगार चाहिए

जेब में पैसे नहीं हैं डिग्री लिये फिरता हूँ
दिनोंदिन अपनी ही नजरों में गिरता हूँ
कामयाबी के घर में खुले किवाड़ चाहिए
बेरोजगार हूँ साहब मुझे रोजगार चाहिए

प्रतिभा की कमी नहीं है भारत की सड़कों पर
दुनिया बदल देंगे भरोसा करो इन लड़कों पर
लिखते-लिखते मेरी कलम तक घिस गयी
नौकरी कैसे मिले जब नौकरी ही बिक गयी
नौकरी की प्रक्रिया में अब सुधार चाहिए
बेरोजगार हूँ साहब मुझे रोजगार चाहिए

दिन रात एक करके मेहनत बहुत करता हूँ
सूखी रोटी खाकर ही चैन से पेट भरता हूँ
भ्रष्टाचार से लोग खूब नौकरी पा रहे हैं
रिश्वत की कमाई खूब मजे लेकर खा रहे हैं
नौकरी पाने के लिए यहाँ जुगाड़ चाहिए
बेरोजगार हूँ साहब मुझे रोजगार चाहिए

— हेमन्त सिंह कुशवाह

हेमंत सिंह कुशवाह

राज्य प्रभारी मध्यप्रदेश विकलांग बल मोबा. 9074481685

One thought on “रोजगार की चाहत

  • दिन रात एक करके मेहनत बहुत करता हूँ
    सूखी रोटी खाकर ही चैन से पेट भरता हूँ
    भ्रष्टाचार से लोग खूब नौकरी पा रहे हैं
    रिश्वत की कमाई खूब मजे लेकर खा रहे हैं
    नौकरी पाने के लिए यहाँ जुगाड़ चाहिए
    बेरोजगार हूँ साहब मुझे रोजगार चाहिए

    बेरोजगारी का दर्द मार्मिक है। किन्तु बन्धु भ्रष्टाचार और जुगाड़ का वातावरण होते हुए भी भर्ती प्रक्रियाओं के माध्यम से बिना किसी लेन-देन और जुगाड़ के भी नियुक्तियां होती हैं। इसका प्रमाण मैं स्वयं हूं। मेरा भाई भी केवल योग्यता के आधार पर उत्तर प्रदेश सरकार में नियुक्ति पाया है। अतः मेरा विचार है- ईमानदारी भी जिन्दा है और योग्यता को सम्मान मिलता है। यह अलग बात है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने आप को योग्य समझता है और व्यवस्था को नाकारा सिद्ध करने की कोशिश करता है।

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