गाता है ऋतुराज तराने
वासन्ती मौसम आया है,
प्रीत और मनुहार का।
गाता है ऋतुराज तराने,
बहती हुई बयार का।।
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पंख हिलाती तितली आयी,
भँवरे गुंजन करते हैं,
खेतों में कंचन पसरा है,
हिरन कुलाँचे भरते हैं,
टेसू हुआ लाल अंगारा,
बरस रहा रँग प्यार का।
गाता है ऋतुराज तराने,
बहती हुई बयार का।।
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नीड़ बनाने को पक्षीगण,
तिनके चुन-चुनकर लाते,
लटके गुच्छे अंगूरों के,
सबके मन को भरमाते,
कल-कल, छल-छल का स्वर भाता
गंगा जी की धार का।
गाता है ऋतुराज तराने,
बहती हुई बयार का।।
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झड़बेरी पर बेर आ गये,
पेड़ों पर नव पल्लव हैं,
शाम-सवेरे अपने घर में,
पंछी करते कलरव हैं,
धन्यवाद करते हैं सारे,
ईश्वर के उपकार का।
गाता है ऋतुराज तराने,
बहती हुई बयार का।।
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कलियों पर निखार आया है,
फूलों पर छाया यौवन,
चहक रहे हैं बाग-बगीचे,
महक रहा खिलता उपवन,
ढंग निराला होता जग में,
होली के त्यौहार का।
गाता है ऋतुराज तराने,
बहती हुई बयार का।।
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(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)