शीर्षक :- बेटी संग दोहे
चला रहे अति लाड़ से , बेटी प्रिय संतान।
नन्हीं कलिका में छिपा ,उज्ज्वल भविष्य मान ।।१।।
बोल तोतले बोलती , मोह रही पितु मात।
बेटी ही है दिख रही , भविष्य की सौगात ।।२।।
बाँहों मैं है झूलती , मात पिता संसार।
दुनिया से बेखबर है , मिलता स्नेह अपार।।३।।
रामचरितमानस लगे , बेटी सिया स्वरूप ।
तुतलाती करुणा भरी , बोले मधुर अनूप।।४।।
गौरैया शुक सारिका , बन जाते हैं मित्र।
टें टें में बातें करें , समझें नेक चरित्र ।।५।।
करते बेटे के लिए, बेटी का जो खून।
रहें नर्क वह भोगते, खिले न हदय प्रसून।।६।।
पढ़ लिख कर बेटी करे , गार्गी सम शास्त्रार्थ।
धवल कमल बनकर रहे, रहे सदा निस्वार्थ ।।७।।
रहें सुरक्षित बेटियाँ , आगे आएँ लोग ।
संस्कारित बेटे बनें , मिट जायें सब रोग।।८।।
सारिका ठाकुर “जागृति”
सर्वाधिकार सुरक्षित
ग्वालियर (मध्य प्रदेश)